tauba karne ka aasan sahi tarika

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तौबा करने की दुआ हिन्दी में।

अस्तग़फिरुल लाहल लजी़ ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल क़य्यूमू व अतूबु इलैहि।

तर्जुमा:- मै उस अल्लाह से माफ़ी मांगता हूं जिसके सिवा कोई माबूद नहीं है। वोह जि़न्दा और का़यनात का निगरां है। मै उसी के हुज़ूर तौबा करता हूं।

दुआ की फजी़लत

हदीस शरीफ़ में है इस दुआ के मांगने वाले के गुनाह को माफ कर दिया जाता है चाहे वह मैदान ए जन्ग से ही भागा हुवा हो (अबु दाऊद)

तौबा के मा'ना ( मतलब) और इस की हकीकत !

सवाल :- तौबा का क्या मतलब है ? नीज़ इस की हकीकत भी बयान फ़रमा दीजिये । 

जवाब :- तौबा का मतलब है रुजूअ करना और लौट जाना जैसा कि मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान फ़रमाते हैं :

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 तौबा के मतलब रुजूअ करना । 

अगर यह हक़ तआला की सिफ़त हो तो इस के मा'ना होते हैं इरादए अज़ाब से ( अपनी शान के लाइक ) रुजूअ फ़रमा लेना ( जैसा कि पारह 4 सूरतुन्निसाअ की आयत नम्बर 17 में है : 

इन्नमत तौउबतु लिल्लाहिल लजी़ना यअमलूनास सूआ बिजाहलतिन सुम्मा यतूबूना मिन क़रीबिन फउलाइका यतूबुल लाहु अलैइहिम व कानल्लाहू अलीमन हकीमा।

तरजुमए कन्जुल ईमान :- वोह तौबा जिस का क़बूल करना अल्लाह ने अपने फ़ल से लाज़िम कर लिया है।

 वोह उन्हीं की है जो नादानी से बुराई कर बैठे फिर थोड़ी ही देर में तौबा कर लें ऐसों पर अल्लाह अपनी रहमत से रुजूअ करता है और अल्लाह इल्मो हिक्मत वाला है ) 

और अगर यह बन्दे की सिफ़त हो ( या'नी यह कहा जाए कि बन्दे ने तौबा की ) तो इस का मतलब होता हैं गुनाह से इताअ़त की तरफ़ ।

गफलत से ज़िक्र की तरफ़ , गैबत ( या'नी गैर हाज़िरी ) से हुजूर ( या'नी हाज़िरी ) की तरफ़ लौट जाना ( या'नी पलट आना ) । 

तौबा ए सहीह यह है कि बन्दा गुज़श्ता गुनाहों पर नादिम हो , आइन्दा न करने का अहद करे।

 और जिस क़दर हो सके उसी क़दर गुज़श्ता गुनाहों का इवज़ और बदला कर दे।

नमाजें बाकी रहती  हों तो क़ज़ा करे ।

कजा़ नमाज़ पढ़ने का आसान तरीका हिन्दी में पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करके पढ़ें।

कजा़ नमाज़ पढ़ने का तरीका हिन्दी में।

किसी का क़र्ज रह गया है तो अदा कर दे । 

हज़रते सय्यदना जुन्नैद बग़दादी फ़रमाते हैं कि तौबा का कमाल यह है कि दिल लज्जते गुनाह बल्कि गुनाह भूल जाए ।

 या'नी दोबारा उस गुनाह के करने का ख़याल भी दिल में न आए ( मिरआतुल मनाजिह 3/353 ) 

तौबा के मा'ना अक्सर लोगों ने अपने गाल पर चपत मार लेना या अपने कान पकड़ कर ज़बान से " तौबा तौबा " या sorry कह देना समझ रखा है यह हरगिज़ तौबा नहीं है । 

तौबा की हक़ीक़त तो यह है 

कि बन्दा जिस गुनाह से तौबा करना चाहता है उस गुनाह पर शरमिन्दा हो कर उसे तर्क कर दे मतलब छोड़ दें। और आइन्दा उस से बचने का पुख्ता इरादा करे ।

 इस तरह अगर कोई तौबा करेगा तो अल्लाह उस की तौबा क़बूल फ़रमाएगा चुनान्चे पारह 25 सूरतुश्शूरा की आयत नम्बर 25 में इर्शादे रब्बुल आलमीन है ।

वहुवल्लजी युकबलुत तौउबता अन इबादिही व यअ़फू अनिस सय्यिआती व यअलमू मा तफअ़लून।

तर्जुमा कन्जुल ईमान :- और वही है जो अपने बन्दों की तौबा क़बूल फ़रमाता है ।

और गुनाहों से दर गुज़र फ़रमाता है और जानता है जो कुछ तुम करते हो । 

इस आयते करीमा के तहत सदरुल अफ़ाज़िल हज़रते अल्लामा मौलाना सय्यिद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादआबादी फ़रमाते हैं : “ तौबा हर एक गुनाह से वाजिब है।

 और तौबा की हक़ीक़त यह है कि आदमी बदी व मा'सियत ( या'नी गुनाह ) से बाज़ आए और जो गुनाह उस से सादिर ( या'नी वाकेअ ) हुवा उस पर नादिम ( शरमिन्दा ) हो ।

और हमेशा गुनाह से मुजतनिब ( या'नी दूर ) रहने का पुख्ता इरादा करे ।

और अगर गुनाह में किसी बन्दे की हक़ त - लफ़ी भी थी तो उस हक़ से ब तरीके शर - ई ओहदा बरआ हो।

 ( या'नी अगर किसी गुनाह में बन्दे का कोई हक़ मारा तो जिस तरह शरीअत ने उसे अदा करने का हुक्म दिया है उस तरह उसे अदा करे ) मिरआतुल मनाजीह , 3/353

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tauba karne ki dua hindi, तौबा करने का आसान तरीका हिन्दी में।

अल्ला हुम्मग़ फिर लना क़ब्लल मउती वरहमना इ़न्दल मउती वला तुअज़्जिबना बअ़दल मउती वला तुहासिबना यउमल कि़यामती इन्नका अ़ला कुल्ली शैइन क़दीर।

तर्जुमा:- ऐ अल्लाह मौत से पहले हमारी मग़फिरत फरमा, और मौत के वक्त हम पर रहम फरमा, और मौत के बाद हमे अ़जा़ब ना देना, और क़यामत के दिन हमारा हिसाब ना लेना, बे शक तू हर चीज़ पर का़दिर है।

 हदीसे पाक में गुनाहों पर नदामत को भी तौबा कहा गया है चुनान्चे ख़ल्क के रहबर , शाफेए महशर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया :

अन्नदमु तौबतुन

नदामत ( या'नी शरमिन्दगी ) तौबा है। 

(इब्ने माजा किताबुज़ ज़ुहद बाब जिकरुत तौउबती 492/4 हदीस 4252

तौबा करना तमाम लोगों पर वाजिब है ।

सवाल :- तौबा करना कब वाजिब होता है ? 

जवाब :- हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली रहमतुल्लाहि अलैह इर्शाद फ़रमाते हैं : 

गुनाह सरज़द होने पर फौरन तौबा करना वाजिब है क्यूं कि गुनाहों को छोड़ देना हमेशा वाजिब है । 

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इसी तरह अल्लाह की इताअत करना भी हमेशा वाजिब ( या'नी ज़रूरी ) है ।

 अल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया : 

व तूबू इलल लाही जमीअन अइयुहल मोमिनून (पारह 18 सूरह नूर 31)

तर्जुमा कन्जु़ल ईमान : और अल्लाह की तरफ़ तौबा करो ऐ मुसल्मानो ! सब के सब ।

इस आयत से यह बात मालूम होती है कि तौबा करना तमाम लोगों पर वाजिब है।

 यह इस लिये कि आम तौर पर कोई भी इन्सान आ'ज़ा या ख़यालात के गुनाहों से खाली नहीं होता।

 और इस की कम अज़ कम सूरत अल्लाह की जात से गाफ़िल होना या उस से तवज्जोह का हट जाना है ।

 अम्बियाए किराम अलैहिस्सलाम और सिद्दीक़ीन की यह शान है कि वोह इस से भी तौबा करते हैं । 

( अलबाबुल अहयाअ अलबाबुल हादी वस सलासूना फित तौउबती सफा नम्बर 272 ) 

जब भी ब तकाज़ाए ब - शरिय्यत ( या'नी इन्सानी तका़जे की वजह से ) गुनाह सरज़द हो जाए तो बिगैर ताख़ीर किये फ़ौरन तौबा कर लेनी चाहिये ।

क्या इस्लाम में तौबा कुछ खास टाइम और ख़ास मका़मात या जगह में करना चाहिए या कहीं पर भी और कभी भी तौबा किया जा सकता है?

 तौबा करने के लिये न तो वुजू और गुस्ल करने की ज़रूरत है और न ही मस्जिद वगैरा में जाने की हाजत ।

और न ही बरकत वाले अय्याम मिस्ल जुमा वगैरा का इन्तिज़ार ज़रूरी क्यूं कि तौबा गुनाहों पर शरमिन्दा होना है ।

 उन्हें छोड़ देने और आयिन्दा उन से बचने के पुख्ता इरादे का नाम है लिहाज़ा इस के लिये ख़ास जगह और दिन की कैद नहीं । 

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गुनाहों पर का़यम रहते हुए तौबा करना कैसा ?

सवाल :- गुनाहों पर का़यम रहते हुए सिर्फ ज़बान से तौबा करते रहना कैसा है ?

 नीज़ तौबा की सूरतें भी बयान फ़रमा दीजिये ? 

जवाब :- गुनाहों पर का़यम रहते हुए फ़क़त ज़बान से तौबा कर लेना काफ़ी नहीं ।

मसलन कोई शख्स बे नमाज़ी या दाढ़ी मुन्डा है। और वोह अपने इन गुनाहों से तौबा करता है।

 लेकिन इस के बावजूद नमाज़ नहीं पढ़ता , दाढ़ी नहीं रखता तो उस का यह तौबा करना नहीं कहलाएगा।

 क्यूं कि जिस गुनाह से वोह तौबा कर रहा है उस गुनाह को उस ने छोड़ा ही नहीं है ।

तौबा जब ही सहीह है कि क़ज़ा पढ़ ले । 

उस को तो अदा न करे , तौबा किये जाए , यह तौबा नहीं कि वोह नमाज़ जो इस के ज़िम्मे थी उस का न पढ़ना तो अब भी बाकी है ।

और जब गुनाह से बाज़ न आया तो तौबा कहां हुई । 

हदीस में फ़रमाया : गुनाह पर काइम रह कर इस्तग़फार ( तौबा ) करने वाला उस के मिस्ल है जो अपने रब से ठठ्ठा ( या'नी मज़ाक ) करता है । ( शुअएबुल ईमान बाब फिल मुआलिजह 436/5 हदीस 7178 ) 

मुफस्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान फ़रमाते हैं :

 तौबा की तीन (3) सूरतें हैं ।

 ( 1 ) हुकूके शरीअत से तौबा 

( 2 ) हुकूकुल इबाद से तौबा और 

( 3 ) हुकूकुल्लाह से तौबा । 

हुकूके शरीअत की तौबा में ज़रूरी है कि वोह हुकूक़ अदा कर दिये जाएं ।

  1.  नमाजें रह गई हैं तो क़ज़ा करे ।
  2. रोज़े रह गए हैं तो पूरे करे ।
  3. दाढ़ी मुंडाता है तो तौबा करे और आइन्दा न मुंडाने का अहद करे । ऐसे ही बन्दों के हुकूक़ अदा करे । 
( तफ्सीरे नईमी पारह 3 सूरह आले इमरान तहत आयत 17: 3/296 )

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tauba karne ki dua hindi mein.

astagfirul laahal lazi la ilaaha illa huwal hayyul qayyoomoo wa atoobu ilaihi.


tarjuma:- mai us allaah se maafi maangata hoon jisake siwa koi maabood nahin hai.

 Woh zinda aur qayanaat ka nigaraan hai. 

mai usi ke huzoor tauba karata hoon.

dua kee fazilat

hadis sharif mein hai is dua ke maangane waale ke gunaah ko maaf kar diya jaata hai chaahe wah maidaan e jang se hi bhaaga huva ho (abu daood)

tauba ke mana ( matalab) aur is kee hakeekat !

sawal :- tauba ka keya matalab hai ? neez is kee haqikqat bhee bayaan farama deejiye . 


jawab :- tauba ka matalab hai rujoo karana aur laut jaana. jaisa ki mufassire shahir hakeemul ummat hazarate mufti e ahamad yaar khaan faramaate hain :

 tauba ke matalab rujoo karana . 

agar yah haq taaala kee sifat ho to is ke mana hote hain

 iraade azaab se ( apanee shaan ke laik ) rujoo farama lena 

( jaisa ki paarah 4 sooratunnisa kee aayat nambar 17 mein hai : 


innamat tauubatu lillaahil lajeena yaamaloonaas sooa bijaahalatin summa yatooboona min qareebin phulaika yatoobul laahu alaiihim va kaanallaahoo aleeman hakeema.

tarajuma kanzul imaan :- woh tauba jis ka qabool karana allaah ne apane fal se laazim kar liya hai.


 Woh unheen kee hai jo nadani se burai kar baithe fir thodee hi der mein tauba kar len.

 aison par allaah apanee rahamat se rujoo karata hai aur allaah ilmo hikmat vaala hai ) 


aur agar yah bande kee sifat ho ( yanee yah kaha jae ki bande ne tauba kee )

 to is ka matalab hota hain gunaah se itata kee taraf .


gaflat se zikr kee taraf , gaibat ( yanee gair haaziree ) se hujoor ( yanee haaziree ) kee taraf laut jaana ( yanee palat aana ) . 


tauba e saheeh yah hai ki banda guzashta gunaahon par naadim ho , 

aainda na karane ka ahad kare.


 aur jis qadar ho sake usee qadar guzashta gunaahon ka ivaz aur badala kar de.

namaajen baakee rahatee hon to qaza kare .

kaza namaz padhane ka aasaan tareeka hindee mein padhane ke lie link par click karake padhen.

kaza namaaz padhane ka tareeka hindee mein.


kisee ka qarz rah gaya hai to ada kar de . 


hazarate sayyadana junnaid bagdaadi faramaate hain ki

 tauba ka kamaal yah hai ki dil lajjate gunaah balki gunaah bhool jae .


 yanee dobaara us gunaah ke karane ka khayaal bhee dil mein na aae ( miraatul manaajih 3/353 ) 


tauba ke mana aksar logon ne apane gaal par chapat maar lena ya apane kaan pakad kar zabaan se 

" tauba tauba " ya sorry kah dena samajh rakha hai yah haragiz tauba nahin hai . 

tauba kee haqeeqat to yah hai 

ki banda jis gunaah se tauba karana chaahata hai

 us gunaah par sharaminda ho kar use tark kar de 

matalab chhod den. aur aainda us se bachane ka pukhta iraada kare .


 is tarah agar koee tauba karega to allaah us kee tauba qabool faramaega 

chunaanche paarah 25 sooratushshoora kee aayat nambar 25 mein irshaade rabbul aalameen hai .

Wahuwallajee yukabalut tauubata an ibaadihee va yaphoo anis sayyiaatee va yaalamoo ma taphloon.

tarjuma kanzul iman :- aur wahi hai jo apane bandon kee tauba qabool faramaata hai .


aur gunaahon se dar guzar faramaata hai 

aur jaanata hai jo kuchh tum karate ho . 

is aayate kareema ke tahat sadarul afaazil hazarate allaama maulaana sayyid muhammad naeemuddeen muraadaabaadee faramaate hain : 

tauba har ek gunaah se vaajib hai.

 aur tauba kee haqiqat yah hai ki aadmi badee wa masiyat ( yanee gunaah ) se baaz aae 

aur jo gunaah us se saadir ( yanee waake ) huwa us par naadim ( sharaminda ) ho .


aur hamesha gunaah se mujatanib ( yanee door ) rahane ka pukhta iraada kare .


aur agar gunaah mein kisi bande kee haq talafi bhi ki thi to us haq se ba tareeke shar - ee ohada bara ho.

 ( yanee agar kisee gunaah mein bande ka koee haq maara to jis tarah shareeat ne use ada karane ka hukm diya hai

 us tarah use ada kare ) miraatul manaajeeh , 3/353


 hadise paak mein gunaahon par nadaamat ko bhee tauba kaha gaya hai chunaanche khalk ke rahabar , shaaphee mahashar svalallaaho alaihi wasallam ne irshaad faramaaya :

annadamu taubatun

nadaamat ( yanee sharamindagee ) tauba hai. 

(ibne maaja kitaabuz zuhad baab jikarut tauubatee 492/4 hadees 4252

tauba karana tamaam logon par waajib hai .

sawaal :- tauba karana kab waajib hota hai ? 


jawaab :- hujjatul islaam hazarate sayyidana imaam muhammad gazaalee rahamatullaahi alaih irshaad faramaate hain : 


gunaah sarazad hone par phauran tauba karana waajib hai

 kyoon ki gunaahon ko chhod dena hamesha waajib hai . 


isee tarah allaah kee itaat karana bhee hamesha waajib ( yanee zarooree ) hai .

 allaah ne irshaad faramaaya : 

Wa tooboo ilal laahee jameean aiyuhal mominoon

 (AL Quran , paarah 18, soorah noor 31)


tarjuma kanzul imaan : aur allaah kee taraf tauba karo ai musalmaano ! sab ke sab .


is aayat se yah baat maaloom hotee hai ki tauba karana tamaam logon par vaajib hai.


 yah is liye ki aam taur par koee bhee insaan aaza ya khayaalaat ke gunaahon se khaalee nahin hota.


 aur is kee kam az kam soorat allaah kee jaat se gaafil hona ya us se tavajjoh ka hat jaana hai .


 ambiyae kiraam alaihissalaam aur siddeeqeen kee yah shaan hai ki voh is se bhee tauba karate hain . 


( alabaabul ahaya alabaabul haadee vas salaasoona phit tauubatee sapha nambar 272 ) 


jab bhee ba takaazae ba - shariyyat ( yanee insaanee takaje kee vajah se ) gunaah sarazad ho jae 

to bigair taakheer kiye fauran tauba kar lenee chaahiye .


kya islaam mein tauba kuchh khaas taim aur khaas makamaat ya jagah mein karana chaahie

 ya kaheen par bhee aur kabhee bhee tauba kiya ja sakata hai?

 tauba karane ke liye na to wujoo aur gusl karane kee zaroorat hai aur na hee masjid wagaira mein jaane kee haajat .


aur na hee barakat waale ayyaam misl juma wagaira ka intizaar zarooree kyoon ki tauba gunaahon par sharaminda hona hai .


 unhen chhod dene aur aayinda un se bachane ke pukhta iraade ka naam hai

 lihaaza is ke liye khaas jagah aur din kee kaid nahin . 


gunaahon par kayam rahate hue tauba karana kaisa ?

savaal :- gunaahon par kayam rahate hue sirf zabaan se tauba karate rahana kaisa hai ?

 neez tauba kee sooraten bhee bayaan farama deejiye ? 


javaab :- gunaahon par kayam rahate hue faqat zabaan se tauba kar lena kaafee nahin .


masalan koee shakhs be namazi ya daadhi munda hai. 

aur woh apane in gunaahon se tauba karata hai.


 lekin is ke baawajood namaaz nahin padhata , daadhee nahin rakhata to us ka yah tauba karana nahin kahalaega.


 kyoon ki jis gunaah se voh tauba kar raha hai us gunaah ko us ne chhoda hee nahin hai .

tauba jab hee saheeh hai ki qaza padh le . 

us ko to ada na kare , tauba kiye jae , yah tauba nahin ki voh namaaz jo is ke zimme thee us ka na padhana to ab bhee baakee hai .


aur jab gunaah se baaz na aaya to tauba kahaan huee . 


hadees mein faramaaya : gunaah par kaim rah kar istagaphaar ( tauba ) karane waala 

us ke misl hai jo apane rab se thaththa ( yanee mazaak ) karata hai . 

( shuebul eemaan baab phil muaalijah 436/5 hadees 7178 ) 


muphassire shaheer , hakeemul ummat hazarate muftee ahamad yaar khaan faramaate hain :

 tauba kee teen (3) sooraten hain .

( 1 ) hukooke shareeat se tauba 

( 2 ) hukookul ibaad se tauba aur 

( 3 ) hukookullaah se tauba


hukooke shareeat kee tauba mein zarooree hai

 ki woh hukooq ada kar diye jaen .


  1.  namazen rah gaee hain to qaza kare .
  2. roze rah gae hain to poore kare .
  3. daadhee mundaata hai to tauba kare aur aainda na mundaane ka ahad kare . aise hee bandon ke hukooq ada kare . 

( taphseere naeemee paarah 3 soorah aale imaraan tahat aayat 17: 3/296 )

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