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हदीस शरीफ़ यानी पैगम्बर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम की प्यारी और क़ीमती बात हम तक पहुंचने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है पढ़ें और अपने ईमान को ताज़ा करें और अपने दोस्तों रिश्तेदारों को infomgm की पोस्ट शेयर करें बेहतरीन जानकारी देने में सदकये जारिया का हिस्सा बने।
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१. हदीस शरीफ़ क्या है हदीस की किस्में?
२. दुश्मनी से हिफाजत के लिए वजीफा
रिवायते हदीस का यह सिलसिला जिन पर खत्म होता है यह साहाबा रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम हैं ।
इसलिए कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुबारक जिंदगी को हकीकत में देखने वाले और दिन - रात के हाज़िर रहने वाले वही लोग हैं ।
अगर उन बुर्जुगों ने हुजूर की हदीसों को दूसरों तक न पहुंचाया होता तो हदीस के रिवायत करने की बुनियाद ही न पड़ती और शरीअत का सोता जहां से फूटा था वहीं जाम होके रह जाता ।
Hadis sharif pahunchane ki riwayat |
आखिर एक ज़माना की बात दूसरे ज़माना में कैसे पहुंची ?
अगर सुनने देखने वालों ने पहुंचाने का बंदोबस्त नहीं किया था ।
इस राह में सहाबए किराम का जज़्बा मालूम करने के बाद मामूली समझ का आदमी भी इस नतीजे पर पहुंचे बगैर नहीं रह सकता कि वह इस काम को दीन का बहुत बड़ा काम समझते थे ।
जैसा कि देखने वालों का बयान है कि जब तक इस दुनिया को हुजूर की ज़ाहिरी जिंदगी की बरकतें हासिल रहीं।
सहाबा का मजमा हर वक्त कान लगाये रहता कि कब हुजूर कुछ फ़रमायें और हम सुन लें ।
और इतना ही नहीं बल्कि हाज़िर रहने वालों से इस का इक़रार लिया जाता कि वह गैर हाज़िर रहने वालों तक हुजूर की सारी बातें पहुंचा दिया करें ।
जैसा कि हज़रत अल्लामा हाफ़िज़ नैशापुरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रते बरा इब्ने आज़िब रज़ियल्लाहु तआला अनहु से इस सिलसिले में एक हदीस रिवायत करते हैं ।
कि उन्होंने फ़रमाया हम सब हदीसों को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से नहीं सुन पाते थे ।
हम ऊँटों की देख भाल में लगे रहते थे और सहाबए किराम हुजूर से जो हदीस नहीं सुन पाते थे ।
वह अपने ज़माना के ज़्यादा याद रखने वालों से सुन लिया करते थे ।
सहाबा के ज़माने में हदीसों के रिवायत करने के मौके
दीन की सारी बातों को मुसलमानों तक पहुंचाने के लिए सहाबए किराम के दरमियान हदीसों की रिवायत का दिन - रात यह तरीका तो था ही ।
इसके इलावा भी बहुत से मौके इस तरह के सामने आते थे ।
जब कि किसी खास मसले में कुरआन का कोई हुक्म खुल्लम खुल्ला जवाब नहीं मिलता तो सहाबा के मजमा से पूछा जाता कि इस मसला के बारे में हुजूर की कोई हदीस किसी को मालूम हो तो वह बयान करे ।
जैसा कि यही हाफ़िज़ नेशापुरी हज़रते कुबैसा इब्ने जुवैब रज़ियल्लाहु तआला अनहु से एक हदीस रिवायत करते हैं उन्होंने बयान किया कि
हज़रते अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अनहु की खिलाफत के ज़माना में उनकी ख़िदमत में हाज़िर हुई वह चाहती थी कि उसे पोते की मीरास में से कुछ हिस्सा दिया जाये ।
हज़रते अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु तआला अनहु ने फरमाया कि कुरआन मजीद में तेरा कोई हिस्सा मैं नहीं पाता हूं और मुझे यह भी मालूम नहीं है कि हुजूर ने तेरे बारे में कुछ फ़रमाया है ।
जब उसने बार - बार कहा तो फ़रमाया ठहर , मैं शाम को लोगों से उस के बारे में पूछूगा ।
जुहर की नमाज़ पढ़ने के बाद लोगों से उसके बारे में पूछा ।
उस पर हज़रते मुग़ीरा इब्ने शोबा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु खड़े हुये और फरमाया कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मैंने सुना है कि वह दादी को छटा हिस्सा देते थे । ( मारिफ़ते उलूमिल हदीस )
वाकिआ की तहकीक
बात इतनी ही पर नहीं ख़त्म हो गई बल्कि मुग़ीरा इब्ने शोबा हदीस बयान करके जब बैठ गये तो ।
हज़रते अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु तआला अनहु दोबारा खड़े हुए और फरमाया क्या यह बात आप के साथ किसी और ने भी सुनी है ?
इस सवाल पर हज़रते मुहम्मद इब्ने मुस्लिमा खड़े हुए और उन्होंने बयान किया कि मैं ने भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि - वसल्लम से सुना है कि वह दादी को छटा हिस्सा देते थे ।
अल्लाहु अकबर ! जानते हैं ? हज़रते अबू बकर का यह सुवाल कि आप के साथ यह बात किसी और ने भी सुनी है ?
किस से है ? यह हज़रते मुग़ीरा इब्ने शोबा रज़ियल्लाहु तआला अनहु हैं जो बड़े सहाबा में से हैं जिन को ईमानदारी व परहेजगारी और अमानत व सच्चाई की कसम खाई जा सकती है ।
लेकिन यहीं से यह बात खुल्लम खुल्ला ज़ाहिर हो जाती है कि हुजूर की हदीस दीन के लिए दलील न होती तो हदीस की तस्दीक़ इस तरह न की जाती ।
और यहीं से यह बात भी ज़ाहिर हो गई कि बयान करने वाले एक से दो हो जाये तो बात और ज़्यादा साबित हो जाती है ।
किसी वाकिआ की खबर एक ही आदमी की जुबानी सुनी जाये और वही खबर कई आदमियों के ज़रिये मालूम हो तो दोनों में जो यकीन का फर्क है वह ज़ाहिर है ।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हदीस शरीफ़ के बारे में अपने यक़ीन को इन्तिहा पर पहुंचाने के लिए सहाबए किराम के यहाँ इस तरह का बन्दोबस्त हमें कदम कदम पर मिलता है ।
एक ईमान अफ़रोज वाकिआ
हज़रते अल्लामा हाफिज़ नैशापुरी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने मशहूर सहाबी हज़रते अबू अय्यूब अंसारी रज़ियल्लाहु तआला अनहु का एक वाकिआ बयान किया है ।
फरमाते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से एक हदीस उन्हों ने सुनी थी और इत्तिफ़ाक़ की बात यह है कि उस हदीस के सुनने वालों में मशहूर सहाबी हज़रते उकबा इब्ने आमिर रज़ियल्लाहु तआला अनहु भी थे ।
हुजूर के विसाल फरमाने के बाद जब मिस्र व शाम और रुम व ईरान पर इस्लामी झंडा लहराने लगा तो बहुत से सहाबा हिजाज़ से यानी मदीना से दूसरे मुल्कों में चले गये ।
उन्हीं लोगों में हज़रते उकबा इब्ने आमिर भी थे जो मिस्र गये और फिर वहीं रह गये ।
हज़रते अबू अय्यूब अंसारी को किसी तरह यह मालूम हो गया कि जो हदीस मैं ने हुजूर से सुनी हैं उसके सुनने वालों में हज़रते उकबा इब्ने आमिर भी हैं तो सिर्फ इस बात का जज़्बा उन्हें मदीना शरीफ से मिस्र ले गया ।
कि हज़रते उकबा इब्ने आमिर से इस बात को पूछने के बाद यह कह सकें कि इस हदीस के रिवायत करने वाले दो हैं एक मैं हूं दूसरे उकबा इब्ने आमिर हैं ।
उन के इस सफर का हाल भी बड़ा ही रुह परवर ( प्राणवर्धक ) है ।
फरमाते हैं कि जज़्बए शौक में पहाड़ों , जंगलों और नदियों को पार करते हुए वह मिस्र पहुंचे ।
बुढ़ापे की उम्र , कठिन रास्ता लेकिन शौक़ में न बुढ़ापे का असर मालूम हुआ और न रास्ते की कठिनाईयाँ रुकावट बनीं ।
दिन रात चलते रहे । महीनों का रास्ता तै करके जब मिस्र पहुंचे तो सीधे मिस्र के गवर्गर हज़रते मुस्लिमा इब्ने मुखल्लद अंसारी की कोठी पर उतरे ।
गवर्नर ने पूछा अबू अय्यूब ! आप का आना किस लिए हुआ ?
आपने फरमाया हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मैं ने एक हदीस सुनी है।
और इत्तिफ़ाक़ की बात यह है कि उस हदीस के सुनने वालों में मेरे और उकबा इब्ने आमिर के इलावा अब कोई इस दुनिया में बाकी नहीं रहा ।
लिहाज़ा मेरे साथ एक ऐसा आदमी लगा दो जो मुझे उन के घर तक पहुंचा दे ।
मतलब यह है कि मैं तुम्हारे पास इस लिए नहीं आया हूं कि तुम से मिलू बल्कि सिर्फ इस लिए आया हुँ कि तुम हज़रते उकबा इब्ने आमिर के घर तक पहुंचा देने का प्रबंध कर दो ।
एक इश्क वाले की ज़रा शाने बेनियाज़ी देखिए कि गवर्नर के दरवाज़े पर गये हैं ।
मगर एक शब्द भी उसके बारे में नहीं कहते । वाकिआ रिवायत करने वाले का बयान है कि मिस्र के गवर्नर ने एक जानकार आदमी साथ . कर दिया जो उन्हें हज़रते उकबा इब्ने आमिर के घर तक ले गया ।
गले मिलने के बाद उन्हों ने भी पहला सुवाल यही किया अबू अय्यूब ! आपका आना किस लिए हुआ ?
आपने फरमाया कि एक हदीस मैं ने हुजूर से सुनी है और उस का सुनने वाला मेरे और आप के इलावा अब दुनिया में कोई बाकी नहीं रहा ।
और वह हदीस मुसलमान की बुराई पर पर्दा डालने के बारे में है हज़रते उकबा ने कहा कि हाँ हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलेहि वसल्लम से मैं ने यह हदीस सुनी है।
कि जो मुसलमान की किसी बुराई को छुपाता है कल कियामत के दिन अल्लाह तआला उसकी बुराई को छुपायेगा ।
हज़रते अबू अय्यूब ने फरमाया आप ने सच कहा यही मैंने भी सुना है ।
इसके बाद बयान करते हैं कि हज़रते अबू अय्यूब इतना सुनकर अपनी सवारी के पास आए और सवार होकर मदीना की तरफ वापस लौट गये ।
गोया मिस्र के लंबा सफर का मतलब इसके सिवा कुछ और नहीं था कि अपने कान से सुनी हुई बात दूसरे की जुबानी सुन लें ।
महबूब की बात के सुनने का यही वह जज़्बा था जिसने मज़हबे इस्लाम को मज़हबे इश्क बना दिया ।
हज़रते अल्लामा हाफ़िज़ नेशापुरी इस वाक़िआ के आखिर में लिखते हैं कि यह हज़रते अबू अय्यूब अंसारी हैं जो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ बहुत ज्यादा करीब रहने वाले और ज़्यादा हदीस रिवायत करने वाले हैं।
इसके बावजूद सिर्फ एक हदीस के लिए इतना लंबा सफर किया। ( मारिफ़्ते उलूमिल हदीस )
एक और वाक़िया
इस तरह का एक और वाकिआ हज़रते जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु तआला अनहु के बारे में इमाम नैशापुरी ने लिखा है ।
बात यहाँ से चली है कि अपने वक्त के बहुत बड़े मुहृद्दिस हज़रते अम्र इब्ने अबू सलमा इमामुल हदीस हज़रते इमाम औज़ाई रज़ि यल्लाहु तआला अनहु के यहाँ चार 4 साल रहे।
इतने लंबे ज़माने में उन्होंने सिर्फ तीस हदीसें उन से सुनी एक दिन वह हज़रते इमामें औज़ाई से बड़े अफ़सोस के साथ कहने लगे कि आप के पास रहते हुये मुझे चार साल हो गये।
लेकिन इतने लंबे ज़माने में सिर्फ तीस हदीसें मैंने आप से सुनीं ।
इमामे औज़ाई ने फरमाया कि चार साल के ज़माने में तीस हदीसें तुम कम समझ रहे हो।
हालाँकि हज़रते जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह ने सिर्फ एक हदीस के लिए मिस्र का सफर किया , सवारी खरीदी और उस पर सवार होकर मिस्र गये और हज़रते उकबा ' इब्ने आमिर से भेंट करके मदीना वापस लौट गये । ( मारिफते उलूमिल हदीस सफा 9 )
मतलब यह है कि चार वर्ष के ज़माने में तीस हदीसों के सुनने को गनीमत समझो कि एक बड़ी नेमत कम से कम वक्त में तुम को मिल गई वरना सहाबा के ज़माने में तो सिर्फ एक हदीस के लिए लोग दूर दूर के मुल्कों का सफर किया करते थे।
तो एक हदीस पर दो महीने का भी वक्त खर्च हुआ तो आप हिसाब लगालो तीस हदीस के लिए कितना वक्त चाहिए था ।
बल्कि हाफिज नेशापुरी के लिखने के हिसाब से सहाबा के जमाने में सफर इतना जरुरी था कि हज़रते इब्ने उमर रज़ियल्लाह तआला अनहुमा कहा करते थे।
कि हदीस सीखने वाले को चाहिए कि वह अपने लिए लोहे के जूते तैयार कराये ताकि वह हदीस सीखने के लिए बराबर सफर करता रहे । ( मारिफा सफा 9 )
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