maidaane karbala main 17 din ka doolha

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मैदाने कर्बला में 17 दिन का दूल्हा

शादी के बाद हर इन्सान की तमन्ना यही होती है कि जिन्दगी के हसीन लम्हात खुशी खुशी गुजारे जाएं , मगर इमाम आली मकाम के जां निसारों में एक ऐसा भी दूल्हा था जिसने फूलों के सेहरे को हजरत इमाम हुसैन पर कुर्बान कर दिया । 

वह बनी क़ल्ब का एक नवजवान दूल्हा था जिस की शादी को अभी 17 दिन ही हुए थे । 

कर्बला के मैदान में जब यजीदियों ने खानदाने रसूल पर दाना पानी बन्द कर दिया तो इस जुल्म की ख़बर पास के गांव तक पहुंची । 

एक बुढ़िया ने अपने 17 दिन के दूल्हे को अपने पास बुलाया और कहा कि मेरे रसूल हज़रत मुहम्मद स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का प्यारा नवासा , खातूने जन्नत का लाल जालिमों के चगुल में फस गया है , 

इसलिए मेरी तमन्ना है कि तेरा वह खून जो मेरे दूध से बना है उसका एक - एक कतरा हक़ की राह में बहा कर अहले बैत पर अपनी जान कुर्बान करके मेरी बख्शिश का सामान कर दे । 

बुलाया और बोली 17 दिन का वह दूल्हा , वहब बिन अब्दुल्लाह अपनी मां और नई - नवेली दुल्हन को लेकर कर्बला आ पहुंचे और हजरत इमाम से इजाजत लेकर घोड़े पर सवार होकर मैदाने जंग में पहुंचे और दुश्मनों से बोले - यजीदियो !

 सुन लो , यजीद अमीरुल मोमेनीन नहीं बल्कि इसके लायक तो इमाम हुसैन हैं और वही बेहतरीन अमीरुल मोमेनीन हैं । 

इतना सुनना था कि यज़ीदी फौज के कई सूरमा आपके मुका़बले के लिए आ निकले । 

मुजाहिद वहब बिन अब्दुल्लाह ने आने वालों को बारी - बारी ' मौत के घाट उतार दिया फिर अपनी मां और बीवी के पास आए ।

 वह दोनों मैदाने जंग में उनकी बहादुरी का नजारा देख कर खुश हो रही थीं । 

मां के पास आते ही पूछा - मां ! 

क्या तुम मुझ से खुश हो गई ? 

मां ने दिल खोल कर दुआए दी और कहा - बेटा ! 

मैं तुम से खुश तो हो गई , लेकिन मेरे लाल ! 

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मेरी खुशी तो उस वक्त पूरी होगी जब दुश्मनों के वार से जंग के मैदान में तेरा बदन छलनी हो जाए और तू लाल दूल्हा बन कर शहादत की दुल्हन की गोद में जन्नती मेहमान बनने ही सआदत हासिल करेगा । 

फिर वहब बिन अब्दुल्लाह ने अपनी रोती हुई दुल्हन के सर पर हाथ रख कर तसल्ली दी । 


इतने में यजीदी फौज की तरफ से मोहकम बिन तुफैल शामी पहलवान मस्त हाथी की तरह मैदान में आ कर हुसैनियों को ललकारने लगा । 

उसकी ललकार सुनकर वहब बिन अब्दुल्लाह उसके मुका़बले के लिए निकले । 


मां और दुल्हन को आखिरी सलाम किया । खेमे से निकल कर मैदान में पहुंचे । 

आपको देख कर यजीदी शामी पहलवान मोहकम बिन तुफैल इतराता हुआ आगे बढ़ा और करीब पहुंचते ही वहब पर तलवार का वार करके सर तन से जुदा करना चाहा । 


वहब ने अपने आपको बचा लिया लेकिन वह आपके वार से न बच सका । 

आपने उसे अपने नेजे की अनी पर उठा लिया और ज़ोर से जमीन पर दे मारा ।

 मोहकम की ऐसी दुर्गत देखकर यजीदी फौज का दिल दहल गया । 

शामी पहलवान को खत्म करने के बाद वहब बिन अब्दुल्लाह अपना नेजा हिला - हिला कर यजीदियों को मुका़बले के लिए चैलेंज करते रहे ।

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 लेकिन उधर से कोई भी आपके सामने आने की हिम्मत न कर सका । 

वहब का शौके शहादत मचल रहा था ।

 जब उधर से कोई नहीं आया तो खुद भूंखे शेर की तरह यजीदी फौज पर हल्ला बोल दिया । 


आपके हमले से यजीदी फौज बिखर गई । जोशे शहादत में आप वार करते , मारते - काटते फौज के बीच में पहुंच गए ।

 वार करते - करते आपका नेजा टूट गया तो मियान से तलवार निकाल ली और घोड़े पर सवार इघर उघर तलवार के जौहर दिखाते रहे । 

चारों तरफ से आप पर भी वार होने लगे । 

आप जवाब देते , जवाबी हमला करते इधर से उधर निकल रहे थे । 

इसी बीच किसी ने निशाना लगाया जो आपके घोड़े के सर में लगा । 

आप ज़मीन पर आ गए ।

 दुश्मनों ने चारों तरफ से घेर लिया । चारों तरफ से तीरों की बौछार होने लगी । 

मजबूर व जख्मों से चूर होकर आप ज़मीन पर आ पड़े । 


इसी बीच किसी यजीदी ने आपके सर को काट कर हज़रत इमाम हुसैन के खेमे की तरफ फेंक दिया । 

वहब की मां ने दौड़कर शहीद बेटे का सर अपनी गोद में उठा लिया ।



 शहीद बेटे की पेशानी को चूम कर सीने से लगा लिया और उसे बोसा देकर कहने लगी -

 ऐ मेरे बहादुर बेटे ! 

खुदा गवाह है कि आज तूने मेरे दूध का हक अदा कर दिया ।

 तेरी मां आज तुझ से खुश हो गई ।

 फिर मां ने बेटे का सर दुल्हन की गोद में रखते हुए कहा - बेटी ! तुझे मुबारक हो । 

मैदाने महशर में जब तुझे शहीद की बेवा कह कर पुकारा जाएगा तो तेरा सर फख्र से ऊंचा हो जाएगा । 


तू उस जांबाज मुजाहिद की बीवी है जिसने नई नवेली दुल्हन छोड़ कर हक की राहों में कुर्बान होने के लिए मैदाने जंग में पहुंच कर आले रसूल पर जान का नज़राना पेश कर दिया ।

और शहादत की दुल्हन की गोद में हमेशा के लिए सो गया । 


बीवी ने मोहब्बत और अकी़दत से अपने शहीद शौहर के सर को अपने सीने से लगा लिया । 

खून में लत - पत चेहरा देख कर बर्दाश्त न कर सकी यहां तक कि आंसुओं के गर्म कतरे शहीद शौहर के गालों पर गिर पड़े । 

उसने बड़ी हिम्मत से काम लेने की कोशिश की मगर अफ़सोस , वह संभल न सकी , गम बर्दाश्त न हो सका यहां तक कि वह शहीद शौहर का सर गोद में रखे - रखे खुद भी अल्लाह को प्यारी हो गई । 


हज़ारों रहमतें हो ऐ अमीरे कारवां तुम पर 

फ़ना के बाद भी बाकी है शाने रहबरी तेरी


कर्बला में क्या हुआ था कर्बला में कितने लोग थे कर्बला में शहीदों के नाम कर्बला में नबी के नवासे

मुसीबतों के पहाड़ 

हज़रत अली शेरे खुदा फरमाते हैं अल्लाह के रसूल ने फरमाया जब मेरी उम्मत में यह बुराईयां पैदा हो जाएंगी !

 तो उन पर मुसीबतों के पहाड़ टूटने लगेंगे “ जब सरकारी माल अपना निजी माल समझा जाने लगे , 

• अमानत को माले गनीमत समझा जाने लगे , ' जकात को टैक्स महसूस किया जाने लगे , 

• आदमी अपने दोस्तों के साथ अच्छा बर्ताव करे लेकिन घर वालों को तकलीफ पहुंचाए , 

• मस्जिद में शोर - हंगामा होने लगे , ' बुजुर्गों को बुरा - भला कहा जाने लगे , 

• आदमी की इज्जत उसकी शरारत की वजह से की जाए , नशे की चीजों का इस्तेमाल आम हो जाए । 

जब समाज में यह बुराईया पैदा होने लगें तो लोग अल्लाह के कहर का इन्तेजार करें । 

ऐसी सूरत में या तो लाल आंधी आएगी या जमीन दहल जाएगी , या लोगों की सूरतें बिगाड़ दी जाएगी । 

अल्लाह हमें ऐसी तबाही से बचाए । आमीन तिर्मिज़ी शरीफ

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maidaane karbala main 17 din ka doolha

shaadee ke baad har insaan kee tamanna yahee hotee hai ki jindagee ke haseen lamhaat khushee khushee gujaare jaen , 

magar imaam aalee makaam ke jaan nisaaron mein ek aisa bhee doolha tha jisane phoolon ke sehare ko hajarat imaam e husain par kurbaan kar diya . 


vah banee Qalab ka ek navajavaan doolha tha jis kee shaadee ko abhee 17 din hee hue the . 

karbala ke maidaan mein jab yajeediyon ne khaanadaane rasool par daana paanee band kar diya to is julm kee khabar paas ke gaanv tak pahunchee . 


ek budhiya ne apane 17 din ke doolhe ko apane paas mere rasool ka pyaara navaasa , khaatoone jannat ka laal zaalimon ke chagul mein phas gaya hai , 


isalie meree tamanna hai ki tera vah khoon jo mere doodh se bana hai usaka ek - ek katara haq kee raah mein baha kar ahale bait par apanee jaan kurbaan karake meree bakhshish ka saamaan kar de . 


bulaaya aur bolee 17 din ka vah doolha , vahab bin abdullaah apanee maan aur naee - navelee dulhan ko lekar karbala aa pahunche aur hajarat imaam se ijaajat lekar ghode par savaar hokar maidaane jang mein pahunche aur dushmanon se bole - yajeediyo ! sun lo , 


yazeed ameerul momeneen nahin balki

isake laayak to imaam husain hain aur vahee behatareen ameerul momeneen hain .


 itana sunana tha ki yazeedee fauj ke kaee soorama aapake muqaabale ke lie aa nikale . 


mujaahid vahab bin abdullaah ne aane vaalon ko baaree - baaree maut ke ghaat utaar diya phir apanee maan aur beevee ke paas aae . 


vah donon maidaane jang mein unakee bahaaduree ka najaara dekh kar khush ho rahee theen . maan ke paas aate hee poochha - maan ! kya tum mujh se khush ho gaee ? 


maan ne dil khol kar duae dee aur kaha - beta ! main tum se khush to ho gaee , 

lekin mere laal ! meree khushee to us vakt pooree hogee jab dushmanon ke vaar se jang ke maidaan mein tera badan chhalanee ho jae aur too laal doolha ban kar shahaadat kee dulhan kee god mein jannatee mehamaan banane hee saaadat haasil karega . 


phir vahab bin abdullaah ne apanee rotee huee dulhan ke sar par haath rakh kar tasallee dee . 


itane mein yajeedee fauj kee taraph se mohakam bin tuphail shaamee pahalavaan mast haathee kee tarah maidaan mein aa kar husainiyon ko lalakaarane laga . 


usakee lalakaar sunakar vahab bin abdullaah usake mukaabale ke lie nikale .

 maan aur dulhan ko aakhiree salaam kiya . 

kheme se nikal kar maidaan mein pahunche . 


aapako dekh kar yajeedee shaamee pahalavaan mohakam bin tuphail itaraata hua aage badha aur kareeb pahunchate hee vahab par talavaar ka vaar karake sar tan se juda karana chaaha . 


vahab ne apane aapako bacha liya lekin vah aapake vaar se na bach saka . 

aapane use apane neje kee anee par utha liya aur zor se jameen par de maara . 

mohakam kee aisee durgat .


dekhakar yajeedee fauj ka dil dahal gaya . 

shaamee pahalavaan ko khatm karane ke baad vahab bin abdullaah apana neja hila - hila kar yajeediyon ko mukaabale ke lie chailenj karate rahe . 

lekin udhar se koee bhee aapake saamane aane kee himmat na kar saka . vahab ka shauke shahaadat machal raha tha . 

jab udhar se koee nahin aaya to khud bhooke sher kee tarah yajeedee fauj par halla bol diya . 

aapake hamale se yajeedee phauj bikhar gaee . joshe shahaadat mein aap vaar karate , maarate - kaatate phauj ke beech mein pahunch gae . 


vaar karate - karate aapaka neja toot gaya to miyaan se talavaar nikaal lee aur ghode par savaar ighar ughar talavaar ke jauhar dikhaate rahe . 


chaaron taraph se aap par bhee vaar hone lage . aap javaab dete , javaabee hamala karate idhar se udhar nikal rahe the .


 isee beech kisee ne nishaana lagaaya jo aapake ghode ke sar mein laga . 

aap zameen par aa gae . dushmanon ne chaaron taraph se gher liya . 

chaaron taraph se teeron kee bauchhaar hone lagee . majboor va jakhmon se choor hokar aap zameen par aa pade . 


isee beech kisee yajeedee fauj ne aapake sar ko kaat kar hazarat imaam husain ke kheme kee taraph phenk diya .

 vahab kee maa ne daudakar shaheed bete ka sar apanee god mein utha liya . 


shaheed bete kee peshaanee ko choom kar seene se laga liya aur use bosa dekar kahane lagee - ai mere bahaadur bete ! 

khuda gavaah hai ki aaj toone mere doodh ka hak ada kar diya . teree maa aaj tujh se khush ho gaee . 

phir maan ne bete ka sar dulhan kee god mein rakhate hue kaha - betee ! tujhe mubaarak ho . 

maidaane mahashar mein jab tujhe shaheed kee beva kah kar pukaara jaega to tera sar fakh se ooncha ho jaega . 


too us jaambaaj mujaahid kee beevee hai jisane naee navelee dulhan chhod kar hak kee raahon mein kurbaan hone ke lie maidaane jang mein pahunch kar aale rasool par jaan ka nazaraana pesh kar diya aur shahaadat kee dulhan kee god mein hamesha ke lie so gaya .

 beevee ne mahabbat aur akeedat se apane shaheed shauhar ke sar ko apane seene se laga liya .

 khoon mein lat - pat chehara dekh kar bardaasht na kar sakee yahaan tak ki aansuon ke garm katare shaheed shauhar ke gaalon par gir pade . 

usane badee himmat se kaam lene kee koshish kee magar afasos , 

vah sambhal na sakee , gam bardaasht na ho saka yahaan tak ki vah shaheed shauhar ka sar god mein rakhe - rakhe khud bhee allaah ko pyaaree ho gaee . 


hazaaron rahamaten ho ai ameere kaaravaan tum par 

fana ke baad bhee baakee hai shaane rahabaree teree

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17-day-old groom in Maidan Karbala

After marriage, it is the wish of every person that the beautiful moments of life should be spent happily, but in the life of Imam Ali Maqam, there was such a groom who sacrificed the face of flowers on Hazrat Imam.


  He was a young bridegroom of Bani Qalb, who had only been married for 17 days.  


In the field of Karbala, when the Yazidis stopped drinking water on the family messenger, the news of this atrocity reached the nearby village. 


 An old lady has taken her 17-day-old groom to her, my Messenger's beloved son, the red sinners of Khatune Paradise,

 so I wish that every drop of your blood which is made from my milk is entitled Sacrifice your life on Ahle Bait by flowing in the way and give me the goods of my blessings. 


 Called and said that 17-day-old bridegroom, Wahab bin Abdullah came to Karbala with his mother and newly-wed bride and with permission from Hazrat Imam reached the battlefield on horseback and said to the enemies - Yazidio! Listen, 

not Yazid Amirul Momenin but It is worth it to Imam Hussain and he is the best Amirul Momeneen.

 It was so much to hear that many surmas of the Yazidi army came out to compete with you. Mujahid Wahab bin Abdullah gave turn to those who came

' He was put to death and then came to his mother and wife. She was getting happy seeing the sight of their bravery in both the battles. As soon as he came to his mother, he asked - Mother! Are you happy with me?  

Mother prayed openly and said - son! 

 I am happy with you, but my red! My happiness will be fulfilled only when your body is sieved in the battlefield by the blows of enemies and you will become a red bridegroom and become a heavenly guest in the lap of the bride of martyrdom. 

 Then Wahab bin Abdullah comforted his weeping bride by placing her hand on her head. In the meantime, Mohkam bin Tufail Shami wrestler from the side of the Yazidi army came to the field like an elephant and started challenging the Hussainis.  

Hearing his call, Wahab bin Abdullah went out to compete with him. Last salute to mother and bride. He left the camp and reached the field. Seeing you,

 the Yazidi Shami wrestler Mohkam bin Tufail stepped forward and as soon as he approached Wahab, with a sword, tried to separate him from his body. 

 Wahab saved himself but he could not escape from your blow. You picked it up on your nephew's niece and hit it hard on the ground. Such a misfortune of fascination...

Seeing this, the heart of the Yazidi army was shaken.  

After eliminating the Shami wrestler, Wahab bin Abdullah shook his eyes and challenged the Yazidis to a fight.

  But no one from there could dare to come in front of you. 


 Wahhab's hobby was getting martyred.  

when no one over there

When he came, he himself attacked the Yazidi army like a hungry lion.  


Your attack shattered the Yazidi army. In the zeal of martyrdom, you hit, beat and killed and reached the middle of the army.  

While attacking, your eyes were broken, then took out the sword from the sheath and kept showing the sword of the sword riding on a horse.  


You also started getting attacked from all sides. You were running from here to there, answering, counter-attacking.  

In the meantime, someone hit a target which hit your horse's head. 

 You have come to the ground. Enemies surrounded him from all sides. Arrows started raining from all sides.  

You came to the ground, crushed by the pain and the wounds.  

In the meantime some Yazidi cut off your head and threw it towards the camp of Imam Hussain. 

 Wahab's mother ran and lifted the martyr's son's head in her lap.  

Kissed the martyr son's forehead and hugged him and started saying - O my brave son! God is a witness that today you have paid the right of my milk.  

Your mother became happy with you today. 

 Then the mother placed the son's head on the bride's lap and said - Daughter! Good luck to you When you are called the wife of a martyr in the field Mahshar, then your head will be high with pride. you that brave

Mujahid's wife, who left the newly born bride to sacrifice in the ways of Haq, reached the battlefield and offered her life to the Ale Rasool and slept forever in the lap of the bride of martyrdom.  

With love and devotion, the wife put the head of her martyr husband on her chest. She could not bear to see her face engulfed in blood, even hot sheds of tears fell on the cheeks of the martyr husband.  

She tried to act with great courage, but alas, she could not recover, could not bear the sorrow, even she kept the head of the martyr husband in her lap - she herself became dear to Allah.  

There are thousands of mercy, O rich caravan, even after the fanaan, you are still there, Shane Rehbari Teri

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