GHAIR MUSLIM KO ISLAM KI DAWAT DENAY KA TAREEQA

GHAIR MUSLIM KO ISLAM KI DAWAT DENAY KA TAREEQA DAWAT-E-ISLAM

एक मुसलमान अपने काफिर परिवार के साथ कैसे व्यवहार करे?

GAIR / NON MUSLIM KO ISLAM KI DAWAT KIS TARAH DE? KOI MAUTABAR KITAB BATAYE? 

गैर-मुस्लिमों को इस्लाम की दावत

Question: GAIR / NON MUSLIM KO ISLAM KI DAWAT KIS TARAH DE? KOI MAUTABAR KITAB BATAYE? ASSALMALAIKUM..

एक महिला ने इस्लाम स्वीकार किया है, और वह अपने गैर मुस्लिम परिवार के साथ रहती है। उसके परिवार वाले अब उसके इस्लाम पर कोई आपत्ति नहीं व्यक्त करते हैं। उसने उन्हें विभिन्न तरीक़ों से इस्लाम की ओर आमंत्रित करने का प्रयास किया, परंतु उसका कोई लाभ नहीं हुआ। 

अतः वह उनकी गुमराही के बा-वजूद उनके साथ कैसा व्यवहार करेॽ क्या वह उनके साथ संबंध बनाए रखे अथवा उनके साथ अपने संबंध को सीमित कर लेॽ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

दावाह

इस शब्द को दावत भी कहते हैं। इस्लाम में इसका अर्थ धर्म आमंत्रण है।

अल्लाह सर्वशक्तिमान जिसे इस्लाम की हिदायत (मार्गदर्शन) प्रदान कर दे उसे चाहिए कि वह इस प्रकाश से अपने परिवार और रिश्तेदारों के जीवन को ज्योतिमान करने में पहल करे। क्योंकि वे लोग उसके आमंत्रण और इस्लाम के प्रकाश के सबसे अधिक योग्य हैं। 

और जब उनके बीच ऐसे लोग पाए जाते हैं जिन्हें इस्लाम पर कोई आपत्ति नहीं है तो यह एक महान नेमत है, जिसका एक मुसलमान को अच्छे तरीक़े से उन्हें इस्लाम पेश करने लिए उपयोग करना चाहिए। 


तथा उन्हें इस्लाम की ओर आमंत्रित करने में हर जायज़ साधन अपनाना चाहिए, जैसे कि ऑडियो और वीडियो कैसिट्स, किताबें और वेबसाइटें प्रस्तुत करना, तथा प्रभावशाली मुस्लिम व्यक्तियों को आमंत्रित करना। 

इसी तरह उपहार, अच्छे व्यवहार और उत्तम नैतिकता के माध्यम से उनके साथ निकटता बनाएं, और उनके साथ कठोर व्यवहार करने से बचें और हमेशा अल्लाह से यह प्रार्थना करते रहें कि उन्हें मार्गदर्शन और तौफीक़ प्रदान करे।

Islam arkan information
Dawat e islam

जब अल्लाह तआला ने ऐसे माता-पिता के साथ सद्व्यदहार (दयालुता) का आदेश दिया है, जो अपने बेटे को कुफ्र की तरफ बुलाते हैं और इसके लिए महान प्रयास करते हैं; 

तो जो व्यक्ति आप के लिए इस्लाम से सहमत है और उसे उसपर कोई आपत्ति नहीं है तो उसके साथ इस तरह (अच्छा) व्यवहार करना अधिक उचित है।

अल्लाह तबारक व तआला ने फरमाया :

وَوَصَّيْنَا الْإِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَى وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ . وَإِنْ جَاهَدَاكَ عَلَى أَنْ تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ

لقمان :14-15 

''हम ने इन्सान को उसके माता-पिता के बारे में (सद्व्यवहार की) ताकीद की है, उसकी माँ ने दुख पर दुख सह कर उसे पेट में रखा और उसकी दूध छुड़ाई दो साल में है कि तू मेरी और अपने माता-पिता की शुक्रगुज़ारी कर, अंततः सब को मेरी ही तरफ लौट कर आना है। 

और अगर वे दोनों तुझ पर इस बात का दबाव डालें कि तू मेरे साथ किसी को साझीदार बना, जिसका तुझे ज्ञान न हो तो तू उनका कहना ना मानना, परंतु दुनिया में उन के साथ भले तरीक़े से निर्वाह करना और उसके रास्ता पर चलना जो मेरी तरफ झुका हुआ हो।'' (सूरत लुक़मान : 14-15(


इब्ने जरीर तबरी रहिमहुल्लाह इस आयत की व्याख्य करते हुए लिखते है।


''ऐ मनुष्य! यदि तेरे माता-पिता तुझपर दबाव डालें कि तू मेरे प्रति अपनी उपासना में मेरे साथ किसी और को साझी ठहराए, जिसका तुझे ज्ञान नहीं कि वह मेरा शरीक है - 

और दरअसल अल्लाह तआला का कोई शरीक नहीं है, वह इस बात से सर्वोच्च है -, तो तू मेरे साथ शिर्क करने की उनकी इच्छा में उनका पालन न करना। (और दुनिया में उन के साथ भले तरीक़े से निर्वाह करो) अल्लाह तआला फरमाता है : 

संसार में उनके उन हुक्मों का पालन करो जिस में तुम्हारे ऊपर तथा तुम्हारे और तुम्हारे पालनहार के बीच रिश्ते के विषय में कोई हानि न हो, और न ही वह गुनाहहो।'' ''तफ्सीर तबरी'' (20/139) .


इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह कहते हैं :


''अर्थात : यदि तुमहारे माता-पिता भरपूर प्रयास करें कि तुम उनके धर्म में उनका अनुसरण करोः तो तुम उनकी बातों को स्वीकार न करो। परंतु यह बात तुम्हें दुनिया में उनके साथ भलाई करने से न रोके। (और उसके रास्ता पर चलना जो मेरी तरफ झुका हुआ हो।) अर्थात ईमानवालों के रास्ता पर चलो।'' समाप्त हुआ।

''तफ्सीर इब्ने कसीर'' (6/337).

इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों से पूछा गया :

मेरी एक बहन के सिवाय मेरे परिवार वाले मुश्रिक (अनेकेश्वरवादी) हैं। तो क्या मेरा उनके साथ रहना और खाना-पीना जायज़ हैॽ 

यदि यह जायज़ है जबकि यह मेरी धार्मिक प्रतिबद्धता की कीमत पर नहीं हैः तो क्या मेरे लिए उन्हें स्पष्ट रूप से यह कहना जायज़ है कि वे काफिर हैं और अल्लाह के धर्म से बाहर (निष्कासित) हैंॽ 


जबकि मैं ने उन्हें इस्लाम की ओर आमंत्रित कर चुका हूँ पर वे संकोच में पड़े हैं, न इधर के हैं न उधर के हैं, किन्तु वे शिर्क के अधिक निकट हैं। यह भी ज्ञात रहे कि उनके साथ रहने के सिवा मेरे पास केई आवास नहीं है।

उन लोगों ने जवाब दिया :

''आपको चाहिए कि बराबर उन्हें धर्म का उपदेश और सलाह देते रहें, उन्हें याद दिलाते रहें, उनके साथ अच्छा रहन सहन रखें, और उनके साथ कोमलता से बात चीत करें। यदि आप धनवान हैं तो उन पर खर्च करें; आशा है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान उनके दिलों को खोल दे और उनकी आँखों को रौशन कर दे। 

अल्लाह तआला का फरमान है :

وَإِنْ جَاهَدَاكَ عَلَى أَنْ تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ

لقمان :14-15

''और अगर वे दोनों तुझ पर इस बात का दबाव डालें कि तू मेरे साथ किसी को साझीदार बना, जिसका तुझे ज्ञान न हो तो तू उनका कहना ना मानना, परंतु दुनिया में उन के साथ भले तरीक़े से निर्वाह करना और उसके रास्ता पर चलना जो मेरी तरफ झुका हुआ हो।'' (सूरत लुक़मान : 15(

और उन तक सत्य पहुँचाने के लिए विभिन्न तरीक़ों का प्रयोग करें, जैसे पत्रिकाएं, पुस्तकें, कैसिटें ...आदि। समाप्त हुआ।


''अल्लाह सर्वशक्तिमान ने माता-पिता के साथ अच्छा और दयालुता पूर्ण व्यवहार करने को अनिवार्य ठहराया है चाहे वे काफिर ही क्यों न हों, अल्लाह तआला का फरमान हैः

وَوَصَّيْنَا الْإِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَى وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ . وَإِنْ جَاهَدَاكَ عَلَى أَنْ تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ

لقمان :14-15

''हम ने इन्सान को उसके माता-पिता के बारे में (सद्व्यवहार की) ताकीद की है, उसकी माँ ने दुख पर दुख सह कर उसे पेट में रखा और उसकी दूध छुड़ाई दो साल में है कि तू मेरी और अपने माता-पिता की शुक्रगुज़ारी कर, अंततः सब को मेरी ही तरफ लौट कर आना है।

 और अगर वे दोनों तुझ पर इस बात का दबाव डालें कि तू मेरे साथ किसी को साझीदार बना, जिसका तुझे ज्ञान न हो तो तू उनका कहना ना मानना, परंतु दुनिया में उन के साथ भले तरीक़े से निर्वाह करना और उसके रास्ता पर चलना जो मेरी तरफ झुका हुआ हो।'' (सूरत लुक़मान : 14-15).

अतः आप पर अनिवार्य है कि अपने माता-पिता के साथ सांसारिक मामलों में अच्छा व्यवहार करें। रही बात धार्मिक मामलों कीः तो आप सत्य धर्म का पालन करें भले ही वह आपके पिता के धर्म के विरुद्ध हो।

 परंतु आप अपने माता-पिता के साथ प्रतिफल के तौर पर सद्व्यवहार करेंगे। चुनाँचे आप उनके साथ अच्छा व्यवहार करें और उनके उपकार व भलाई का उन्हें प्रतिफल दें, चाहे वे दोनों काफिर ही क्यों न हों।

इसलिए इसमें कोई बाधा और रुकावट नहीं है कि आप अपने पिता के साथ संपर्क में रहें, उनके साथ अच्छा व्यवहार करें और उन्हें बेहतर बदला दे; लेकिन आप अल्लाह सर्वशक्तिमान की अवज्ञा में उनका पालन न करें।'' संपन्न हुआ।

EK MUSALMAAN APANE KAAFIR PARIWAAR KE SAATH  KAISE VEAYOHAAR KARE?

ek mahila ne islaam sveekaar kiya hai, aur vah apane gair muslim parivaar ke saath rahatee hai. usake parivaar vaale ab usake islaam par koee aapatti nahin vyakt karate hain. 

usane unhen vibhinn tareeqon se islaam kee or aamantrit karane ka prayaas kiya, parantu usaka koee laabh nahin hua. 

atah vah unakee gumaraahee ke ba-vajood unake saath kaisa vyavahaar kareʔ 

kya vah unake saath sambandh banae rakhe athava unake saath apane sambandh ko seemit kar leʔ


har prakaar kee prashansa aur gunagaan keval allaah taaala ke lie yogy hai..


allaah sarvashaktimaan jise islaam kee hidaayat (maargadarshan) pradaan kar de use chaahie ki vah is prakaash se apane parivaar aur rishtedaaron ke jeevan ko jyotimaan karane mein pahal kare. 

kyonki ve log usake aamantran aur islaam ke prakaash ke sabase adhik yogy hain. aur jab unake beech aise log pae jaate hain jinhen islaam par koee aapatti nahin hai to yah ek mahaan nemat hai, 

jisaka ek musalamaan ko achchhe tareeqe se unhen islaam pesh karane lie upayog karana chaahie. tatha unhen islaam kee or aamantrit karane mein har jaayaz saadhan apanaana chaahie,

 jaise ki odiyo aur veediyo kaisits, kitaaben aur vebasaiten prastut karana, tatha prabhaavashaalee muslim vyaktiyon ko aamantrit karana. isee tarah upahaar, achchhe vyavahaar aur uttam naitikata ke maadhyam se unake saath nikatata banaen,

 aur unake saath kathor vyavahaar karane se bachen aur hamesha allaah se yah praarthana karate rahen ki unhen maargadarshan aur taupheeq pradaan kare.


jab allaah taaala ne aise maata-pita ke saath sadvyadahaar (dayaaluta) ka aadesh diya hai, jo apane bete ko kuphr kee taraph bulaate hain aur isake lie mahaan prayaas karate hain; 

to jo vyakti aap ke lie islaam se sahamat hai aur use usapar koee aapatti nahin hai to usake saath is tarah (achchha) vyavahaar karana adhik uchit hai.


allaah tabaarak va taaala ne pharamaaya :


wawashayna alainsaan biwaalidayhi hamalathu aumuhu wahnaⁿ ʿalay wahniⁿ wafishaaluhu fee ʿaamayni aani ashkur lee waliwaalidayk ailay almasheeru .

 waain jaahadaak ʿalay aan tushrik bee ma lays lak bihi ʿilmuⁿ fala tutiʿhuma washaahibhuma fee aldunya maʿroofaⁿ waatabiʿ sabeel man aanaab ailay


lqman :14-15 


ham ne insaan ko usake maata-pita ke baare mein (sadvyavahaar kee) taakeed kee hai, usakee maan ne dukh par dukh sah kar use pet mein rakha aur usakee doodh chhudaee do saal mein hai ki too meree aur apane maata-pita kee shukraguzaaree kar, 

antatah sab ko meree hee taraph laut kar aana hai. aur agar ve donon tujh par is baat ka dabaav daalen ki too mere saath kisee ko saajheedaar bana, jisaka tujhe gyaan na ho to too unaka kahana na maanana, 

parantu duniya mein un ke saath bhale tareeqe se nirvaah karana aur usake raasta par chalana jo meree taraph jhuka hua ho. (soorat luqamaan : 14-15(


ibne jareer tabaree rahimahullaah is aayat kee vyaakhy karate hue likhate hai.


ai manushy! yadi tere maata-pita tujhapar dabaav daalen ki too mere prati apanee upaasana mein mere saath kisee aur ko saajhee thaharae, jisaka tujhe gyaan nahin ki vah mera shareek hai - 

aur darasal allaah taaala ka koee shareek nahin hai, vah is baat se sarvochch hai -, to too mere saath shirk karane kee unakee ichchha mein unaka paalan na karana.

 (aur duniya mein un ke saath bhale tareeqe se nirvaah karo) allaah taaala pharamaata hai : sansaar mein unake un hukmon ka paalan karo jis mein tumhaare oopar tatha tumhaare aur tumhaare paalanahaar ke beech rishte ke vishay mein koee haani na ho, aur na hee vah gunaahaho. taphseer tabaree (20/139) .


ibne kaseer rahimahullaah kahate hain :


arthaat : yadi tumahaare maata-pita bharapoor prayaas karen ki tum unake dharm mein unaka anusaran karoh to tum unakee baaton ko sveekaar na karo. 

parantu yah baat tumhen duniya mein unake saath bhalaee karane se na roke. (aur usake raasta par chalana jo meree taraph jhuka hua ho.) arthaat eemaanavaalon ke raasta par chalo. samaapt hua.


taphseer ibne kaseer (6/337).


iphta kee sthaayee samiti ke vidvaanon se poochha gaya :


meree ek bahan ke sivaay mere parivaar vaale mushrik (anekeshvaravaadee) hain. to kya mera unake saath rahana aur khaana-peena jaayaz haiʔ


 yadi yah jaayaz hai jabaki yah meree dhaarmik pratibaddhata kee keemat par nahin haih to kya mere lie unhen spasht roop se yah kahana jaayaz hai ki ve kaaphir hain aur allaah ke dharm se baahar (nishkaasit) hainʔ 

jabaki main ne unhen islaam kee or aamantrit kar chuka hoon par ve sankoch mein pade hain, na idhar ke hain na udhar ke hain, kintu ve shirk ke adhik nikat hain. yah bhee gyaat rahe ki unake saath rahane ke siva mere paas keee aavaas nahin hai.


un logon ne javaab diya :


aapako chaahie ki baraabar unhen dharm ka upadesh aur salaah dete rahen, unhen yaad dilaate rahen, unake saath achchha rahan sahan rakhen, aur unake saath komalata se baat cheet karen.

 yadi aap dhanavaan hain to un par kharch karen; aasha hai ki allaah sarvashaktimaan unake dilon ko khol de aur unakee aankhon ko raushan kar de. allaah taaala ka pharamaan hai :


waain jaahadaak ʿalay aan tushrik bee ma lays lak bihi ʿilmuⁿ fala tutiʿhuma washaahibhuma fee aldunya maʿroofaⁿ waatabiʿ sabeel man aanaab ailay


lqman :14-15


aur agar ve donon tujh par is baat ka dabaav daalen ki too mere saath kisee ko saajheedaar bana, jisaka tujhe gyaan na ho to too unaka kahana na maanana, 

parantu duniya mein un ke saath bhale tareeqe se nirvaah karana aur usake raasta par chalana jo meree taraph jhuka hua ho. (soorat luqamaan : 15(


aur un tak saty pahunchaane ke lie vibhinn tareeqon ka prayog karen, jaise patrikaen, pustaken, kaisiten ...aadi. samaapt hua.


shaikh abdul azeez bin baaz, shaikh abdurrazzaaq apheephee, shaikh abdullaah bin gudaiyaan. phataava sthaayee samiti (12/255, 256) .


shaikh saaleh bin phauzaan al-phauzaan haphizahullaah kahate hain :


allaah sarvashaktimaan ne maata-pita ke saath achchha aur dayaaluta poorn vyavahaar karane ko anivaary thaharaaya hai chaahe ve kaaphir hee kyon na hon, allaah taaala ka pharamaan haih


wawashayna alainsaan biwaalidayhi hamalathu aumuhu wahnaⁿ ʿalay wahniⁿ wafishaaluhu fee ʿaamayni aani ashkur lee waliwaalidayk ailay almasheeru .

 waain jaahadaak ʿalay aan tushrik bee ma lays lak bihi ʿilmuⁿ fala tutiʿhuma washaahibhuma fee aldunya maʿroofaⁿ waatabiʿ sabeel man aanaab ailay


lqman :14-15


ham ne insaan ko usake maata-pita ke baare mein (sadvyavahaar kee) taakeed kee hai, usakee maan ne dukh par dukh sah kar use pet mein rakha aur usakee doodh chhudaee do saal mein hai ki too meree aur apane maata-pita kee shukraguzaaree kar, 

antatah sab ko meree hee taraph laut kar aana hai. aur agar ve donon tujh par is baat ka dabaav daalen ki too mere saath kisee ko saajheedaar bana, jisaka tujhe gyaan na ho to too unaka kahana na maanana, 

parantu duniya mein un ke saath bhale tareeqe se nirvaah karana aur usake raasta par chalana jo meree taraph jhuka hua ho. (soorat luqamaan : 14-15).


atah aap par anivaary hai ki apane maata-pita ke saath saansaarik maamalon mein achchha vyavahaar karen. 

rahee baat dhaarmik maamalon keeh to aap saty dharm ka paalan karen bhale hee vah aapake pita ke dharm ke viruddh ho. parantu aap apane maata-pita ke saath pratiphal ke taur par sadvyavahaar karenge. 

chunaanche aap unake saath achchha vyavahaar karen aur unake upakaar va bhalaee ka unhen pratiphal den, chaahe ve donon kaaphir hee kyon na hon.


isalie isamen koee baadha aur rukaavat nahin hai ki aap apane pita ke saath sampark mein rahen, unake saath achchha vyavahaar karen aur unhen behatar badala de; lekin aap allaah sarvashaktimaan kee avagya mein unaka paalan na karen. sampann hua.

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