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23/24/25 सफ़रुल मुजफ्फर (माहे रज़ा) 1446 हिजरी मुताबिक़ 29/30/31 अगस्त 2025 ब-रोज़ जुमेरात, जुमा हफ्ता शनिवार को उर्से क़ादरी रज़वी बड़े तुजुक व एहतिशाम के साथ मनाया जायेगा। 

आशिक़ाने मुस्तफ़ा है इस इसे सरापा कुदस की महफ़िल व तकरीबात में शिरकत के लिये जौक़-दर-जौक़ मरकज़े अहले सुन्नत बरेली शरीफ़ हाज़िर हों।

वाहिद यह ऐसा उर्स है जहाँ औरतों की भीड़ नहीं देखी जाती

आला हज़रत द्वारा दिये फ़तवे पर किया जाता है अमल, औरत का मज़ारात पर जाना जायज़ नहीं

बरेली शरीफ में हर साल उर्स ए रज़वी में आने वाले ज़ायरीन की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है। 

दुनिया भर के अलग अलग मुल्क व भारत के कोने कोने से लोग आला हज़रत के उर्स में बरेली आते हैं। 

जदीद इस्लामिक स्कॉलर व उलेमा ए इकराम आला हज़रत की नगरी में जमा होते हैं।

 पूरा शहर आला हज़रत के दीवानों और अकीदत रखने वालो से भर जाता है। उर्स में जायरीन कि संख्या का आकलन किया जाए, तो शायद एक वक्त में जितनी भीड़ आला हज़रत के कुल शरीफ में होती है शायद ही इतनी बड़ी संख्या में लोग किसी और के कुल शरीफ में जमा होते हों। 

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आला हजरत के कुल के दिन की बात ही अलग है। शरीयत के नज़र में आला हज़रत द्वारा दिये फतवों पर भी पूरा अमल किया जाता है। 

इसलिए वाहिद यह एक ऐसा उर्स है जिसमें औरतों की भीड़ नहीं देखी जाती।


यह आला हज़रत के फतवे के ही रूहानी ताकत है कि उनके उर्स में सिर्फ मर्द हज़रात ही आते हैं। औरतें नहीं आती। उर्स में महिलाओ के आने पर यहाँ सख्त मना है। 

बाकायदा इसके लिए दरगाह से अपील भी होती है और उर्स के पोस्टर में लिखा जाता है कि महिलायें उर्स में न आयें। 

अगर अन जाने में उर्स ए आला हज़रत में महिलाये आ भी जाती हैं तो उन्हें दरगाह की तरफ से दरगाह के मेहमान खाने और इस्लामीया गर्ल्स कॉलेज में ठहराने की व्यवस्था होती है।

बताया जाता है औरतों की यहाँ आने की रोक बहुत पहले से है। आला हज़रत दरगाह के अव्वल सज्जादानशीन हुज्जतुल ईस्लाम मुफ्ती हामिद रज़ा खान के ज़माने से ये रोक ऐलान है।

 इसको लेकर आला हज़रत का फतवा भी है औरत का मज़ार पर जाना जायज़ नहीं। 

हुज्जतुल इस्लाम आला हज़रत के बड़े सहाबज़ादे थे और दरगाह के पहले सज्जादा भी थे हुज्जतुल इस्लाम ने भी मज़ार पर आने से औरतों को मना करते थे। 

उलेमा ए इकराम बताते हैं कि शरीयत के नज़र से भी महिलाओं का मज़ारों पर जाना जायज़ नहीं। आला हज़रत ने भी औरतों को मजार पर जाने को सख्ती से मना फरमाया है।


इसलिए दरगाह पर आला हज़रत के इस फतवे पर पूरा अमल किया जाता है। उर्स के दौरान इस बात की ताकीद भी की जाती है। ऐलान किया जाता है उर्स में महिलाएं न आएं। 

अगर सामान्य दिनों में कोई औरत दुआ व फातिहा के लिए दरगाह आती भी हैं तो उनके लिए मज़ार से हटकर एक जगह अलग बनाई गई है। जहाँ सिर्फ महिलायें ही जाकर दुआ फातिहा पढ़ सकती हैं।


वहीं से वापिस लौट जाती हैं। उर्स में लाखों की संख्या में लोग यहाँ आते हैं। पूरा शहर सिर्फ मर्द ज़ायरीन की ही भीड़ दिखती है। 

होटल हो या कोई गेस्ट हाउस शहर के सभी बारात घर, आम लोगो के घरों पर जायरीन की ठहरने की जगह तक कम पड़ जाती है। 

अगर आप अंदाज़ा लगाए सकते हैं सिर्फ मर्द जायरीन की भीड़ से ही पूरा पैक हो जाता है जबकि इसमें महिलायें नहीं होती। 

अगर महिलाये भी उर्स में अपने परिवार के साथ आने लगें तो भीड़ का आलम क्या होगा।


उर्स ए रजवी के दौरान जो महिलाएं अनजाने में बरेली आ जाती है, उनके रुकने की व्यवस्था परदे के साथ दरगाह मेहमान खाने और इस्लामिया गर्ल्स में की जाती है। 

उर्स में बने हेल्पलाइन दफ्तर से भी महिलाओं को पर्दे में रहने की ताकीद की जाती है।

नासिर कुरैशी दरगाह आला हजरत के जानकार


  • इमाम ए अहले सुन्नत आला हज़रत इमाम अहमद रजा खां फ़ाज़िले बरेलवी का पैगाम पूरी दुनिया के लिए है की 
  • अपनी औरतों को मज़ारात पर न भेजो। औरतों का मजार पर जाना जायज़ नहीं। यही वजह है इस फतवे पर अमल किया जाता है। बिलखुसूस उर्स के इस अय्याम में औरतों का आना सख्त मना है।

मुफ्ती खुर्शीद आलम रज़वी शहर इमाम जामा मस्जिद बरेली


कुल शरीफ के दिन आला हज़रत के दीवानों का शहर में समन्दर होता है। यह उनके फतवे का ही असर है ये ऐसा उर्स है जहाँ महिलाओ का आना मना है ये फतवे का अमल है और इस पर अमल भी किया जाता है।

उस्मान रज़ा खां रज़ा एक्शन कमेटी

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