nafrat karne walon ke liye Quran aour hadis ka hukam, apne musalmaan bhai se nafrat karna kaisa hai islam me, islam me kalma padhne walon ke liye nafrat rakhna kaisa hai,
Nafrat Karne Waalon Ke Liye islam Me keya Hukam Aaya Hai
तमाम तारीफें उस खुदा के लिए जो सारे जहान का खालिक व मालिक है ।
और बे शुमार दुरूदो सलाम हों नबी ए मोहतरम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा स्वल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर जो सारे जहान के लिए रहमत बन कर तशरीफ लाए ।
जिन्हें अल्लाह पाक ने कयामत तक के लोगों की हिदायत के लिए कुरआन मजीद अता फ़रमाया ।
आज के इस तरक्की - याफ्ता दौर में बहुत सी इन्सानी इस्लामी कदरें धीरे - धीरे खत्म होती जा रही हैं ।
हर कौम का हाल अजीब होता जा रहा है ।
अल्लाह के प्यारे रसूल ने हमें जिन्दगी गुजारने का जो दस्तूर अता फरमाया था , खुद हम मुसलमान ही उसकी अनदेखी करते जा रहे हैं ।
NAFRAT karne walon ke liye Quran aour Hadis ka hukam |
इस्लामी खूबियां हमारे अन्दर अब नहीं रहीं , यही वजह है कि आपसी दुश्मनी , नफरत , गीबत , चुगली वगैरा का शिकार मुस्लिम समाज भी बड़ी तेजी के साथ बिखरता नज़र आ रहा है ।
इस अफरा - तफरी के माहौल में न तो हमारे अन्दर हुस्ने अमल है और न ही हुस्ने किरदार ।
मोहब्बत और अपसी भाईचारा खत्म हो चला है ।
इस लापर्वाही का नतीजा यह है कि आज जो जहां है , जिस हाल में है , परेशान ही है ।
अम्न - सुकून हमारे घरों और दिलों से निकल चुका है ।
तो क्या हम अपनी इस समाजी तबाही का कोई इलाज तलाश करने की ज़हमत गवारा नहीं करेंगे ?
याद रखना चाहिए कि
अल्लाह पाक ने अपने प्यारे रसूल की प्यारी उम्मत को ज़िन्दगी गुजारने का जो दस्तूर अता फरमाया है ,
वह राहत ही राहत और रहमत ही रहमत है ।
अल्लाह पाक ने फ़रमाया - सारे मोमिन आपस में भाई भाई हैं ।
मतलब यह है कि अल्लाह व रसूल का कलमा पढ़ने वाला कोई भी हो ।
- कहीं का भी हो ।
- काला हो या गोरा ।
- ईरानी हों या अफगानी ।
- चीनी हो या जापानी ।
दीनी भाई होने के नाते हमें सब के साथ भाई चारा बनाए रखना जरूरी है ।
भाई चारा हमदर्दी और महब्बत की बुनियादों पर कायम रहता है ।
हमारे लिए ज़रूरी है कि हम अपने दीनी भाई - बहनों को अपने घर का एक मेम्बर तस्लीम करें और उनकी दिल जूई करते रहें ।
इस्लामी भाई - चारा , इस्लामी वहदत कितना जरूरी है ?
अल्लाह के रसूल फरमाते हैं - किसी मुसलमान के लिए यह बात अच्छी नहीं कि वह अपने किसी दीनी भाई - बहन से तीन दिन तक सलाम कलाम बन्द रखे ।
जिन्दगी के इस लम्बे सफर में ऐसा होता है कि दिन से ज़्यादा सलाम अपने आस किसी छोटी - बड़ी बात पर हमारा एक - दूसरे से मन - मुटाव या बात तकरार हो ही जाती है ।
यह इन्सानी फितरत का तकाजा है ।
लेकिन इसका यह मतलब हरगिज नहीं कि हम उस बात को बढ़ा कर दुश्मनी का रूप देकर हमेशा के लिए दुआ - सलाम , मेल - मुलाकात बन्द कर दें ।
यह तो बहुत बड़ा जुर्म है , गुनाह है , नुकसान ही नुकसान है ।
जो लोग इस की अहमियत नहीं समझते वह बड़े घाटे में रहते हैं ।
आपने खुद देखा होगा , मामूली सी बात का बतंगड़ बना लेने की वजह से पुराने से पुराने करीबी से करीबी यहां तक कि भाई - बहनों और ससुराली रिश्ते भी टूट चुके हैं ।
इस लानत व नुकसान से बचने के लिए अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया -
मुसलमान के लिए जायज नहीं कि वह अपने किसी मुसलमान भाई को तीन दिन से ज़्यादा छोड़े रखे ।
दोनों आपस में मिलते हैं , आमने - सामने होते हैं , यह भी मुह फेर लेता है और वह भी मुंह फेर लेता है ।
उन दोनों में से सबसे अच्छा आदमी वह है जो सलाम में पहल करे ।
आगे बढ़कर सलाम करके बिगड़ते रिश्तों को सुधारने की कोशिश करे ।
यह बहुत नेक काम है , इस लिए इसमें अपनी तौहीन महसूस नहीं करनी चाहिए ।
बल्कि नफ़रत , अदावत और दूरियों को ख़त्म करके भाई चारगी का सबूत पेश करना चाहिए ।
अल्लाह के प्यारे रसूल ने फ़रमाया -
हफ्ते में दो दिन ( सोमवार , व गुरूवार ) बन्दों के आमाल अल्लाह की बारगाह में पेश किए जाते हैं ।
अल्लाह पाक अपनी रहमत से अपने मोमिन बन्दों को बख्श देता है , लेकिन उस आदमी को जिसका किसी मोमिन भाई से अन बन चल रहा होता है ।
उसके बारे में फरमाता है कि इन्हें कुछ मौका दिया जाए
ताकि वह आपस में सुलह - सफाई करके दुश्मनी और हसद को दूर कर के इस्लामी भाई चारा बहाल कर लें । (मुस्लिम शरीफ़)
मतलब यह हुआ कि ऐसे लोग नहीं बख़्शे जाते जो अपने किसी भाई से बोल - चाल बन्द रखते हैं ।
अब ज़रा गौर कीजिए ।
दूरियां बनाए रखने में कितना बड़ा नुकसान है , कि आदमी बख्शिश से महरूम कर दिया जाता है ।
एक और दूसरी हदीस में है , अल्लाह के रसूल फ़रमाते हैं -
पीर Monday और जुमेरात Thursday के दिन जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं , हर ईमानदार बन्दों को बख्श दिया जाता है।
लेकिन जिनके दिल में अपने किसी दीनी भाई के लिए कीना होता है , वह इस इनाम से महरूम रह जाते हैं ।
और उन के बारे में कहा जाता है कि इन्हें मेल - मिलाप कर लेने तक ही मोहलत दे दो ।
जब वह दोनों आपस में सुलह कर लेते हैं , नफरत व रंजिश दूर कर लेते हैं , तब उनकी तरफ भी नज़रे रहमत की जाती है ।
अल्लाह के रसूल फरमाते हैं - किसी मुसलमान के लिए हलाल नहीं कि वह अपने किसी भाई को तीन (3) दिन से ज़्यादा छोड़ दे ।
अगर किसी ने ऐसा किया और इत्तेफाक से इसी बीच मर गया तो इस आपसी रंजिश के नतीजे में वह जहन्नम की आग में दाखिल किया जाएगा ।
हज़रत अबू खरास असलमी रदियल्लाहो अन्हो फरमाते हैं -
मैंने अल्लाह के रसूल को फरमाते हुए सुना है ।
कि जिसने अपने किसी दीनी भाई से ( कुछ अन बन हो जाने पर ) एक साल तक दूरी बनाए रखी ( मेल - मिलाप नहीं किया ) गोया उसने अपने भाई का खून कर दिया । (अबूदाऊद)
अब आप खुद अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि अपनी झूटी शान या किसी और वजह से मेल मिलाप से कतराना कितना बुरा काम व अन्जाम है ।
अल्लाह हमें नेक तौफीक बख्शे । आमीन
हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहो अन्हो फरमाते हैं ने फरमाया किसी मोमिन के लिए जायज नहीं कि वह अपने किसी मोमिन भाई को तीन (3) दिन से ज़्यादा छोड़ रखे ।
अगर तीन (3) दिन बीत जाएं तो उस से मिले , उसे सलाम करे ।
अगर वह सलाम का जवाब दे दे तो दोनों को बराबर सवाब मिलेगा ।
और अगर सामने वाला सलाम का जवाब न दे तो गुनहगार होगा ।
अकसर देखा जाता है कि बात छोटी सी होती है लेकिन होते - होते राई का पहाड़ बन जाती है ।
फिर इन्सान की अपनी हैकड़ी उस पर आग का काम करती है ।
तकब्बुर और हेकड़ी से काम बिगड़ते हैं ।
इसी तकब्बुर ने ही तो इब्लीस जैसे आबिद - जाहिद को मरदूद बना डाला ।
मन मुटाव का मामला आम है हो ही जाता है ।
इन्सानी फिरत है , लेकिन अपने दो भाईयों के बीच हुए मन - मुटाव को दूर करके मोहब्बत का माहौल बनाना भी बड़े सवाब का काम है ।
अल्लाह के रसूल ने सहाबा की मौजूदगी में इरशाद फ़रमाया -सुनो !
दो रुठे भाईयों के बीच सुलह - सफाई करा कर एक बनाने का सवाब नफ्ली रोज़ा रखने से , नफ़्ली नमाज पढ़ने से बेहतर है ।
ज़रा गौर फरमाएं ।
अगर हम इस्लामी तालीमात पर अमल करें , तो हमारे मुस्लिम समाज में भाई - चारे का कैसा हसीन माहौल कायम रहे और फिर जिन्दगी वाकई जिन्दगी बन जाए ।
मौलाए कदीर हमें ऐसी ही तौफीक दे । आमीन!
क्या आप जानते हैं ?
- लफ्ज़ अल्लाह में चार (4) हर्फ हैं और मुहम्मद में भी चार (4) हर्फ हैं।
- लाइलाहा इल्लल्लाह में कोई नुकता नहीं है, और मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह में भी कोई नुक़ता नहीं है।
- ला इलाहा इल्लल्लाह में बारह 12 हर्फ हैं और मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह में भी बारह 12 हर्फ हैं।रसूले पाक का नाम आसमानी दुनिया में अहमद है , जमीन पर मुहम्मद है और जमीन के नीचे महमूद है।
- शबे मेराज में हुजूर ने नबियों की इमामत फरमाई और आसमानों पर फरश्तिों की इमामत फरमाई।
पेशकश :- मौलाना शब्बीर हसन रजा कादिरी रज़्वी मेम्बर infomgm सोसायटी इन्टरनेशनल , खतीबो इमाम जामा मस्जिद शाहपुरा मध्यप्रदेश भारत
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tamaam taarifen us khuda ke liye jo saare jahaan ka khaaliq va maalik hai .
aur beshumaar duroodo salaam hon nabi e mohataram hazarat muhammad mustafa svallallaaho alaihe vasallam par jo saare jahaan ke liye rahamat ban kar tasharif laye .
jinhen allaah paak ne Qayaamat tak ke logon kee hidaayat ke liye Quran majeed ata faramaaya .
aaj ke is tarakki - yaafta daur mein bahut see insaanee islaamee kadren dheere - dheere khatm hotee ja rahee hain .
har kaum ka haal ajeeb hota ja raha hai .
allaah ke pyaare rasool ne hamen jindagee gujaarane ka jo dastoor ata farmaaya tha ,
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Wah raahat hi raahat aur rahamat hi rahamat hai .
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bhai chaara ham drdi aur mahabbat kee buniyaadon par kaayam rahata hai .
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