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ज़िना क्या है ज़िना के अजा़ब?
फ़रमाने इलाही है :
( 1 ) " वल्लजी़ना हुम लिफुरूजिहिम हाफिजून "
तर्जुमा :- वोह हराम और बदकारियों से अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं ।
हवाला
(तर्जमए कन्जुल ईमान : और वोह जो अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं । पारह नम्बर 18 सूरह अल मोमिनून )
Zina Keya hota hai |
( 2 ) एक और आयत में इरशादे रब्बानी है : " वला तक़रबुल फवाहिशा मा ज़्वरा मिन्हा वमा बत्वना "
तर्जुमा :- छोटे बड़े ज़ाहिर पोशीदा किसी भी गुनाह के करीब मत जाओ ।
या'नी ना ही किसी बड़ी बे हयाई का इरतिकाब करो जैसा कि ज़िना और न छोटी का जैसा कि गैर महरम को छूना , देखना वगैरा कि हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशादे मुबारक है ,
1. हाथ ज़िना करते हैं ,
2. पैर ज़िना करते हैं
3. और आंखें ज़िना करती हैं ,
( 3 ) फ़रमाने इलाही है :
" क़ुल्लिल मोमिनीना यगु़द्दू मिन अबस्वारिहिम वा यहफजू फुरूजहुम जा़लिका अज़का लहुम "
तर्जुमा :- मोमिनों से कह दीजिये अपनी आंखें बन्द कर लें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें ।
अल्लाह तआला ने मुसलमान मर्दो और औरतों को हुक्म दिया है कि वोह हराम की तरफ़ न देखें।
और अपनी शर्मगाहों को इर्तिकाबे हराम से महफूज रखें । अल्लाह तआला ने मुतअद्दिद आयात में ज़िना की हुरमत बयान फ़रमाई है ,
(तर्जमए कन्जुल ईमान : मुसलमान मर्दो को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें यह इन के लिये बहुत साफ सुथरा है । (पारह 18 सूरह नूर )
( 4 ) एक जगह इरशादे रब्बानी है :
" व मईं यफअ़ल जा़लिका यलक़ा असामा "
तर्जुमा :- जो शख्स ज़िना करता है उसे असाम में डाला जाएगा ।
( तर्जमए कन्जुल ईमान : और जो यह काम करे वोह सज़ा पाएगा । (पारह 19 सूरह अल फुरकान )
असाम क्या है?
असाम के मुतअल्लिक़ कहा गया है कि जहन्नम की एक वादी है ।
बा'ज़ उलमा ने कहा है कि वोह जहन्नम का एक गार है , जब उस का मुंह खोला जाएगा तो उस की शदीद बदबू से जहन्नमी चीख उठेंगे ।
जिना में छै: (6) मुसीबतें हैं
बा'ज़ सहाबए किराम रदि अल्लाहु अन्हु से मरवी है : ज़िना से बचो ! इस में (6) मुसीबतें हैं जिन में से तीन (3) का तअल्लुक दुनिया से है और तीन (3) का आख़िरत से ।
1.दुनियां में रिज़्क़ कम हो जाता है ,
2.ज़िन्दगी मुख़्तसर हो जाती है
3.और चेहरा मस्ख़ हो जाता है ,
4.आख़िरत में खुदा की नाराज़ी ,
5.सख़्त पुरसिश
6.और जहन्नम में दाखिल होना है ।
रिवायत है कि हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम ने ज़ानी की सज़ा के बारे में पूछा तो रब तआला फ़रमाया : मैं उसे आग की जिरह पहनाऊंगा ।
वोह ऐसी वज़नी है कि अगर बहुत बड़े पहाड़ पर रख दी जाए तो वोह भी रेज़ा रेज़ा हो जाए ।
कहते हैं : इब्लीस को हज़ार बदकार मर्दो से एक बदकार औरत ज़ियादा पसन्द होती है ।
" मसाबीह ' में इरशादे रसूले अकरम स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम है : जब बन्दा ज़िना करता है तो उस का ईमान निकल कर उस के सर पर छतरी की तरह मुअल्लक रहता है ।
और जब वोह इस गुनाह से फ़ारिग हो जाता है तो उस का ईमान फिर लौट आता है । ( तिर्मिजी किताबुल ईमान बाब मा जाआव अइजिनज जानी / मिश्कातुल मसाबेह)
किताबे इक़नाअ में फ़रमाने हुजूरे पुरनूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम है : अल्लाह तआला के नज़दीक नुत्फे को हराम कारी में सर्फ करने से बड़ा कोई गुनाह नहीं है ( मौसूअतु इब्ने अबिद दुनिया किताबुल वरअ बाब अल वरऊ फिल फरज )
और लिवातत ज़िना से भी बदतर है , जैसा कि हज़रते अनस बिन मालिक रदि अल्लाहु अन्हु से मरवी है : हुजूर स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ।
कि जन्नत की खुश्बू पांच सौ (500) साल के सफ़र की दूरी से आएगी मगर लूती और जा़नी इस से महरूम रहेगा । ( अल अलिय्यिल मसनूअतु फिल हदीस )
अमरद एक फ़ितना है?
हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदि अल्लाहु अन्हु घर से बाहर बैठे थे कि एक हसीन लड़का ( अम्रद ) आता हुवा नज़र आया आप दौड़ कर घर में घुस गए और दरवाज़ा बन्द कर लिया ,
कुछ देर बा'द पूछा :- फ़ितना चला गया या नहीं ?
लोगों ने कहा :- चला गया । तब आप बाहर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया फ़रमाने नबवी है : इन की तरफ़ देखना , गुफ़्त्गू करना और इन के पास बैठना हराम है । ( बरीक़तु महमूदिय्यह फी शरह तरीकह मोहम्मदियह )
हज़रते क़ाज़ी इमाम रहमतुल्लाहि अलैह का क़ौल है : मैं ने बा'ज़ मशाइख से सुना है कि औरत के साथ एक शैतान और हसीन लड़के के साथ अठ्ठारह (18) शैतान होते हैं ।
रिवायत है कि जिस ने शहवत के साथ लड़के को बोसा दिया वोह पांच सौ (500) साल जहन्नम में जलेगा ।
( बिऐनिही इन अल्फ़ाज़ के साथ हमें हदीस नहीं मिली अलबत्ता " अल अलिय्यिल मसनूअह की एक रिवायत में पांच सौ (500) साल की जगह एक हज़ार (1000) साल के अज़ाब का तजकिरा है , जिस में अल्फ़ाज़ यूं हैं : " मन क़ब्ला गुलामन बिशहवति अजाबल लाहि फिन नारी अल्फिसनह "
और इमाम सुयूती ने इसे मौजूअ कहा है ।
और जिस ने किसी औरत का बोसा लिया उस ने गोया सत्तर (70) बाकिरा खवातीन के साथ जिना किया और जिस ने किसी बाकिरा औरत से जि़ना किया।
उस ने गोया सत्तर हज़ार (70000) शादी शुदा औरतों से जिना किया । ' रौनकुत्तफ़ासीर ' में कल्बी रहमतुल्लाहि अलैह से मन्कूल है : सब से पहले लिवातत इब्लीस ने शुरूअ की ।
वो हजरत लूत अलैहिस्सलाम की कौम में एक हसीनो जमील लड़के की सूरत में आया और लोगों को अपनी तरफ़ माइल किया यहां तक कि लिवातत उन लोगों की आदत बन गई ।
जो भी मुसाफ़िर आता वोह उस से बद फेअली करते ।
हज़रते लूत अलैहिस्सलाम ने उन्हें इस फ़ेअल बद से रोका यानी कार्य से रोका और अल्लाह की तरफ़ बुलाया और अज़ाबे खुदावन्दी से डराया तो वोह कहने लगे : अगर तुम सच्चे हो तो जाओ अज़ाब ले आओ !
हज़रते लूत अलैहिस्सलाम ने अल्लाह रब्बुल इज्जत से दुआ मांगी जिस के जवाब में उन पर पथ्थरों की बारिश हुई ।
हर पथ्थर पर एक आदमी का नाम लिखा हुवा था और वोह उस आदमी को आ कर लगा , अल्लाह तआला का फ़रमान है : " मुसव्वमतन इ़न्दा रब्बिका "
( तर्जमए कन्जुल ईमान : जो निशान किये हुवे तेरे रब के पास हैं । )
कौमे लूत के एक ताजिर का वाकिया पढ़ें।
हज़रते लूत अलैहिस्सलाम की कौम का एक ताजिर मक्का में ब गरजे तिजारत आया उस के नाम का पथ्थर वहीं पहुंच गया मगर फ़रिश्तों ने यह कह कर रोक दिया कि यह अल्लाह का हरम है ।
चुनान्चे , चालीस (40) दिन यह पथ्थर हरम के बाहर ज़मीनो आस्मान के दरमियान मुअल्लक रहा यानी लटका रहा।
यहां तक कि वोह शख्स तिजारत (बिजनेस) से फ़ारिग हो कर मक्कए मुअज्जमा से बाहर निकला और वोह पथ्थर उसे जा लगा जिस से वोह हलाक हो गया यानी मर गया।
हज़रते लूत अलैहिस्सलाम अपने तमाम अहले खाना को ले कर बस्ती से निकल गए , और फ़रमाया : कोई मुड़ कर न देखे ।
जब क़ौम पर अज़ाब नाज़िल हुवा तो इन की बीवी ने आवाजें सुन कर पीछे देखा और कहा : हाए मेरी क़ौम !
जिस की पादाश में उसे भी एक पथ्थर लगा और वोह हलाक हो गई ।
मुजाहिद कहते हैं : जब सुब्ह करीब हुई तो हज़रते जिब्रील ने उन बस्तियों को परों पर उठा लिया ।
और इतनी बुलन्दी तक ले गए कि आसमान के फ़रिश्तों ने उन के कुत्तों को भोंकता और मुर्गों की बांगों को सुन लिया ।
उस वक्त यह बस्तियां उलट दी गई ।
सब से पहले उन के मकानात गिरे , फिर वोह खुद औंधे मुंह जमीन पर आ रहे और उन पर पथ्थर बरसाए गए ।
कहते हैं कि यह पांच (5) शहर थे जिन में सब से बड़ा सदूम का शहर था , इन शहरों की आबादी चार लाख (400000) थी , अल्लाह तआला ने इन्हें सूरए बराअत में मोतफ़िकात के नाम से याद किया है ।
मजाक उड़ाने का अजाब ।
जब किसी मुसलमान का मजाक उड़ाने को जी चाहे तो खुदारा इस रिवायत पर गौर फरमा लिया कीजिये जिस में सरकारे नामदार , मदीने के ताजदार , रसूलों के सालार , नबियों के सरदार , शहनशाहे अबरार , सरकारे वाला तबार , हम गरीबों के गम गुसार , हम बे कसों के मददगार , साहिबे पसीनए खुश्बूदार , शफ़ीए रोजे शुमार , जनाबे अहमदे मुख़्तार स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम का फ़रमाने इब्रत निशान है :
" कियामत के रोज़ लोगों का मजाक उड़ाने वाले के सामने जन्नत का एक दरवाजा खोला जाएगा और कहा जाएगा कि आओ ! आओ !
तो वोह बहुत ही बे चैनी और गम में डूबा हुवा उस दरवाजे के सामने आएगा मगर जैसे ही दरवाजे के पास पहुंचेगा वोह दरवाज़ा बन्द हो जाएगा ।
फिर जन्नत का एक दूसरा दरवाज़ा खुलेगा और उस को पुकारा जाएगा कि आओ !
चुनान्चे , येह बे चैनी और रन्जो गम में डूबा हुवा उस दरवाजे के पास जाएगा तो वोह दरवाज़ा भी बन्द हो जाएगा ।
इसी तरह उस के साथ मुआमला होता रहेगा यहां तक कि जब दरवाज़ा खुलेगा और पुकार पड़ेगी तो वोह नहीं जाएगा । ( मौसूअतू इब्ने अबिद दुनिया किताबस सम्त )
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Zina kya hai?
faramaane ilaahee hai :
( 1 ) " vallajeena hum liphuroojihim haaphijoon "
tarjuma :- voh haraam aur badakaariyon se apanee sharmagaahon kee hifaazat karate hain .
(tarjame kanjul eemaan : aur voh jo apanee sharmagaahon kee hifaazat karate hain . paarah nambar 18 soorah al mominoon )
( 2 ) ek aur aayat mein irashaade rabbaanee hai : " vala taqarabul phavaahisha ma zvara minha vama batvana "
tarjuma :- chhote bade zaahir posheeda kisee bhee gunaah ke kareeb mat jao .
yanee na hee kisee badee be hayaee ka iratikaab karo jaisa ki zina aur na chhotee ka jaisa ki gair maharam ko chhoona , dekhana vagaira ki hujoor svalallaaho alaihi vasallam ka irashaade mubaarak hai ,
1. haath zina karate hain ,
2. pair zina karate hain
3. aur aankhen zina karatee hain ,
( 3 ) faramaane ilaahee hai : " qullil momineena yaguddoo min abasvaarihim va yahaphajoo phuroojahum jalika azaka lahum "
tarjuma :- mominon se kah deejiye apanee aankhen band kar len aur apanee sharmagaahon kee hifaazat karen .
allaah taaala ne musalamaan mardo aur auraton ko hukm diya hai ki voh haraam kee taraf na dekhen.
aur apanee sharmagaahon ko irtikaabe haraam se mahaphooj rakhen . allaah taaala ne mutaddid aayaat mein zina kee huramat bayaan faramaee hai ,
(tarjame kanjul eemaan : musalamaan mardo ko hukm do apanee nigaahen kuchh neechee rakhen aur apanee sharmagaahon kee hifaazat karen yeh in ke liye bahut suthara hai . paarah 18 soorah noor )
( 4 ) ek jagah irashaade rabbaanee hai : " va maeen yaphla jalika yalaqa asaama "
tarjuma:- jo shakhs zina karata hai use asaam mein daala jaega .
( tarjame kanjul eemaan : aur jo yeh kaam kare voh saza paega . paarah 19 soorah al phurakaan )
asaam ke mutalliq kaha gaya hai ki jahannam kee ek vaadee hai .
baz ulama ne kaha hai ki voh jahannam ka ek gaar hai , jab us ka munh khola jaega to us kee shadeed badaboo se jahannamee cheekh uthenge .
Zina mein chhai: (6) museebaten hain
baz sahaabe kiraam radi allaahu anhu se maravee hai : zina se bacho ! is mein (6) museebaten hain jin mein se teen (3) ka taalluk duniya se hai aur teen (3) ka aakhirat se .
1.duniyaan mein rizq kam ho jaata hai ,
2.zindagee mukhtasar ho jaatee hai
3.aur chehara maskh ho jaata hai ,
4.aakhirat mein khuda kee naaraazee ,
5.sakht purasish
6.aur jahannam mein daakhil hona hai .
rivaayat hai ki hazrate moosa alaihissalaam ne zaanee kee saza ke baare mein poochha to rab taaala faramaaya : main use aag kee jirah pahanaoonga .
voh aisee vazanee hai ki agar bahut bade pahaad par rakh dee jae to voh bhee reza reza ho jae .
kahate hain : iblees ko hazaar badakaar mardo se ek badakaar aurat ziyaada pasand hotee hai .
" masaabeeh mein irashaade rasoole akaram svalallaaho alaihi vasallam hai : jab banda zina karata hai to us ka eemaan nikal kar us ke sar par chhataree kee tarah muallak rahata hai .
aur jab voh is gunaah se faarig ho jaata hai to us ka eemaan phir laut aata hai . ( tirmijee kitaabul eemaan baab ma jaaav aijinaj jaanee / mishkaatul masaabeh)
kitaabe iqana mein faramaane hujoore puranoor svalallaaho alaihi vasallam hai : allaah taaala ke nazadeek nutphe ko haraam kaaree mein sarph karane se bada koee gunaah nahin hai ( mausooatu ibne abid duniya kitaabul var baab al varoo phil pharaj )
aur livaatat zina se bhee badatar hai , jaisa ki hazarate anas bin maalik radi allaahu anhu se maravee hai :
hujoor svalallaaho alaihi vasallam ne faramaaya ki jannat kee khushboo paanch sau (500) saal ke safar kee dooree se aaegee magar lootee aur jaanee is se maharoom rahega . ( al aliyyil masanooatu phil hadees )
amarad ek fitana hai
hazrate abdullaah bin umar radi allaahu anhu ghar se baahar baithe the ki ek haseen ladaka ( amrad ) aata huva nazar aaya aap daud kar ghar mein ghus gae aur daravaaza band kar liya ,
kuchh der bad poochha : fitana chala gaya ya nahin ?
logon ne kaha : chala gaya . tab aap baahar tashareef lae aur faramaaya : faramaane nabavee hai :
in kee taraf dekhana , guftgoo karana aur in ke paas baithana haraam hai . ( bareeqatu mahamoodiyyah phee sharah tareekah mohammadiyah )
hazarate qaajee imaam rahamatullaahi alaih ka qaul hai : main ne baz mashaikh se suna hai ki aurat ke saath ek shaitaan aur haseen ladake ke saath aththaarah shaitaan hote hain .
rivaayat hai ki jis ne shahavat ke saath ladake ko bosa diya voh paanch sau (500) saal jahannam mein jalega .
( biainihee in alfaaz ke saath hamen hadees nahin milee alabatta " al aliyyil masanooah kee ek rivaayat mein paanch sau (500) saal kee jagah ek hazaar (1000) saal ke azaab ka tajakira hai , jis mein alfaaz yoon hain : " man qabla gulaaman bishahavati ajaabal laahi phin naaree alphisanah "
aur imaam suyootee ne ise maujoo kaha hai .
aur jis ne kisee aurat ka bosa liya us ne goya sattar (70) baakira khavaateen ke saath jina kiya aur jis ne kisee baakira aurat se jina kiya.
us ne goya sattar hazaar (70000) shaadee shuda auraton se jina kiya . raunakuttafaaseer mein kalbee rahamatullaahi alaih se mankool hai : sab se pahale livaatat iblees ne shuroo kee ,
vo hajarat loot alaihissalaam kee kaum mein ek haseeno jameel ladake kee soorat mein aaya aur logon ko apanee taraf mail kiya yahaan tak ki livaatat un logon kee aadat ban gaee ,
jo bhee musaafir aata voh us se bad phelee karate . hazarate loot alaihissalaam ne unhen is fele bad se roka allaah kee taraf bulaaya aur azaabe khudaavandee se daraaya to voh kahane lage : agar tum sachche ho to jao azaab le aao !
hazarate loot alaihissalaam ne allaah rabbul ijjat se dua maangee jis ke javaab mein un par paththaron kee baarish huee , har paththar par ek aadamee ka naam likha huva tha aur voh us aadamee ko aa kar laga ,
allaah taaala ka faramaan hai : " musavvamatan inda rabbika " ( tarjame kanjul eemaan : jo nishaan kiye huve tere rab ke paas hain . )
qaume loot ke ek taajir (business man) ka vaakiya padhen
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chunaanche , chaalees (40) din yah paththar haram ke baahar zameeno aasmaan ke daramiyaan muallak raha .
yahaan tak ki voh shakhs tijaarat se faarig ho kar makke muajjama se baahar nikala aur voh paththar use ja laga jis se voh halaak ho gaya yaanee mar gaya.
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jab qaum par azaab naazil huva to in kee beevee ne aavaajen sun kar peechhe dekha aur kaha : hae meree qaum !
jis kee paadaash mein use bhee ek paththar laga aur voh halaak ho gaee .
mujaahid kahate hain : jab subh kareeb huee to hazarate jibreel ne un bastiyon ko paron par utha liya aur itanee bulandee tak le gae ki aasmaan ke farishton ne un ke kutton ko bhonkata aur murgon kee baangon ko sun liya ,
us vakt yah bastiyaan ulat dee gaee ,
sab se pahale un ke makaanaat gire , phir voh khud aundhe munh jameen par aa rahe aur un par paththar barasae gae .
kahte hain ki yah paanch (5) shahar the jin mein sab se bada sadoom ka shahar tha , in shaharon kee aabaadee chaar laakh thee , allaah taaala ne inhen soorh baraat mein motafikaat ke naam se yaad kiya hai .
majaak udaane ka ajaab
jab kisee musalamaan ka majaak udaane ko jee chaahe to khudaara is rivaayat par gaur pharama liya keejiye jis mein sarakaare naamadaar , madeene ke taajadaar ,
rasoolon ke saalaar , nabiyon ke saradaar , shahanashaahe abaraar , sarakaare vaala tabaar , ham gareebon ke gam gusaar , ham be kason ke madadagaar , saahibe paseene khushboodaar , shafeee roje shumaar ,
janaabe ahamade mukhtaar svalallaaho alaihi vasallam ka faramaane ibrat nishaan hai :
" Qayaamat ke roz logon ka majaak udaane vaale ke saamane jannat ka ek daravaaja khola jaega aur kaha jaega ki aao ! aao !
to voh bahut hee be chainee aur gam mein dooba huva us daravaaje ke saamane aaega magar jaise hee daravaaje ke paas pahunchega voh daravaaza band ho jaega .
phir jannat ka ek doosara daravaaza khulega aur us ko pukaara jaega ki aao !
chunaanche , yeh be chainee aur ranjo gam mein dooba huva us daravaaje ke paas jaega to voh daravaaza bhee band ho jaega .
isee tarah us ke saath muaamala hota rahega yahaan tak ki jab daravaaza khulega aur pukaar padegee to voh nahin jaega . ( mausooatoo ibne abid duniya kitaabas samt )
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