taziyadari karna kaisa hai

क्या इस्लाम में ताजियादारी जायज़ है या नाजायज?

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कुछ लोग मुहर्रम और सफ़र के महीने में ताजि़ये बनाते उन्हें ढोल बाजों के साथ घुमाते और उनके साथ सीना पीटते,मातम करते हुये उन्हें नक्ली और फर्ज़ी कर्बला में ले जा कर दफन करते हैं। 

यह सब बातें इस्लाम में मना हैं, नाजाइज़ व गुनाह हैं। 

प्यारे इस्लामी भाइयो! हमारा आपका प्यारा मज़हब जो "इस्लाम" है, वह एक साफ सुथरा, संजीदा और शरीफ अच्छा भला,सीधा सच्चा मज़हब है। 

वह खेल तमाशों, गाने बाजों,ढोल ढमाकों, नाच,कूद फांद,मातम और सीना कूबी वाला मजहब नहीं है आजकल की ताजियेदार और उसको जाइज़ बताने वाले,दुनिया को यह ज़हेन दे रहे हैं कि इस्लाम भी दूसरे धर्मों की तरह मेलों ठेलों और खेल तमाशों वाला मज़हब हैं।

कुछ लोग कहते हैं कि ताजिये बनाना जाइज़ है,उसको घुमाना वगैरा नाजाइज़ है। 

यह बात भी एक दम दुरूस्त नहीं बल्कि आजकल जो ताजिया बनाया जाता है,उस को बनाना भी मना है क्योंकि यह हज़रत इमाम हुसैन के रौज़े और मज़ार का सही नुक्शा नहीं। 

बल्कि इजाज़त सिर्फ इतनी है कि हजरत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु के मज़ार पुर अन्वार का सही नक्शा किसी कागज़ वगैरा पर बना हुआ अपने पास या घर में रखे जैसे


खाना-ए-काबा,गुंबदे खजरा,बगदाद शरीफ अजमेर शरीफ वगैरा के बने हुये नक्शे कलन्डरों वगैरा में और अलग से भी आते हैं और लोग बरकत हासिल करने के लिए उन्हे घरों में टांगते हैं।(हवाले और तफसील से जानने के लिए देखिये

फतावा रज़विया जि.10 किस्त अव्वल स.36

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मुहर्रम के महीने की 7,12,13 तारीख को जो मेहंदी बनाई या निकाली जाती है,यह भी एक बेकार और गढ़ी हुई रस्म है ,राफ़ज़ी और शीआ मज़हब की पैदावार है, इस्लाम का इस से कोई तअल्लुक नहीं,जिहालात का नतीजा है।


अहले सुन्नत वलजमाअत का मज़हब यह है कि हज़रत इमाम हुसैन और दूसरे शहीदाने करबला और बुज़ुर्गाने दीन से सच्ची मोहब्बत यह है कि उनके नक्शे क़दम पर चला जाये और उनके रास्ते तरीके,ढंग और चाल चलन को अपनाया जाये।

 और उसके साथ साथ उनकी रूह को सवाब पहुँचाने के लिए नफ़िल पढ़े जायें,रोज़े रखे जायें,

कुरआने करीम की तिलावत की जाये या सदका खैरात कर के अहबाब दोस्तों, रिशतेदारों या गरीबों मिस्कीनों को खाना,खिचड़ा,हलवा,मलीदा जो मयस्सर हो वह खिला कर उस का सवाब उनकी पाक रूहों को पहुँचाया जाये,जिस को फ़ातिहा कहते हैं, 

तो यह बे शक जाइज़ उम्दा और अच्छा काम है और उस से अल्लाह तआला राज़ी होता है। और अपने रब की रज़ा हासिल करना हर मुसलमान के लिए हर ज़रूरत से ज़्यादा ज़रूरी है। और न्याज़,फातिजा,सदका,खैरात में भी यह ज़रूरी है कि अपने नाम शोहरत और दिखावे के लिए न हो। 

बल्कि। जो भी और जितना भी हो खालिस अल्लाह तआला की रज़ा हासिल करने और बुज़ुर्गों को सवाब पहुँचाने के लिए हो। आजकल कुछ लोग लम्बी लम्बी न्याज़े दिलाते,खूब देगें पका पका कर खिलाते है 

और उनका मकसद अपनी नामवरी और शौहरत होता है और वह दिखावे के लिए ऐसा करते हैं। उनकी यह नियाज़ै कबूल नहीं होंगी।


यह भी सुन्ने में आया है कि कोई शख्स ताजियेदारी और उसके साथ की जाने वाली खुराफात से मना करे कुछ लोग उसे वहाबी कह देते हैं और समझते हैं। ताजियेदारी सुन्नियों का काम है और उस से मना करना वहाबियों का तरीका है।

 हांलाकि ऐसा नहीं बल्कि कभी किसी सही सुन्नी आलिम ने ताजियेदारी को जाइज़ नहीं कहा है बल्कि सब ने हमेशा नाजाइज़गुनाह लिखा और आला हज़रत मौलाना अहमद रजा खाँ फाज़िले बरेलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की किताबों में तो जगह जगह उसको हराम बताया गया है

 और उस बारे में उनके फतावा का मजमूआ एक किताब की शक्ल में छप भी चुका है


जिस का नाम रिसाला-ए-ताजिये दारी है। लिहाजा जो हमारे भाई तफ़सील से इस मसअले को पढ़ना चाहें वह सुन्नी कुतुब ख़ानों से इस रिसाले को हासिल कर के पढ़ें।


और जो मौलवी ताजियेदारी को जाइज़ कहते हैं, वह ऐसा पब्लिक को खुश करने और उन से प्रोग्रामो के ज़रिए नज़राने वगैरा हासिल करने के लिए करते हैं।

 उन्हें चाहिए कि पब्लिक को खुश रखने के बजाये अल्लाह तआला और उस के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को राज़ी रखने की फिक्र करे क्योंकि हराम को हलाल बताने वालों की जब क़ब्रहश्र में पिटाई होगी तो यह पब्लिक बचाने नहीं जायेगी 

और उन जलसों प्रोग्रामों और नज़रानों की रकमों के ज़रीए वहाँ जान नहीं छूटेगी। बल्कि यही ताजियेदार जिन को खुश रखने के लिए यह मौलवी गलत मसअले बताते हैं,कयामत के दिन उनका दामन पकड़ेंगे।

यह भी मुम्किन है कि ताजियेदारी और उस के साथ की जाने वाली खुराफातों को जाइज़ कहने वाले मौलवी वहाबियों के एजेन्ट हों और उनसे खुफिया समझौता किये हुये हों क्योंकि वहाबियत को उस ज़रिये से फायदा पहुँचता


और काफी लोग अपनी जिहालत की वजह से हमारे माहौल में खिलाफे शरअ हरकात देख कर वहाबियों की तारीफ करने लगते हैं हांलाकि यह उन की भूल है और सुन्नी उलमा की किताबें न पढ़ने का नतीजा है।

हाँ इतना जानना ज़रूरी है कि वहाबी ताजियेदारी को शिर्क और ताजियेदारों को मुशिरककाफ़िर तक कह देते हैं। लेकिन सुन्नी उलमा उन्हें मुसलमान और अपना भाई ही ख्याल करते हैं। बस बात इतनी है कि वह एक गुनाह कर रहे हैं। खुदाए तआला उन्हें इस से बचने की तौफिक अता फरमाये ।

ताजियेदारी से मुतअल्लिक तफसीली मालमात हासिल करने के लिए किताब मुहर्रम में क्या जाइज़ क्या नाजाइज़ का मुताला करें |

गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,176


आला हज़रत अहमद रज़ा खां रहमातुल्ला साहब बरेलवी का फ़तवा

 1. अलम , ताजिया , अबरीक , मेहंदी , जैसे तरीके जारी करना बिदअत है , बिदअत से इस्लाम की शान नहीं बढती , ताजिया को हाजत पूरी करने वाला मानना जहालत है , उसकी मन्नत मानना बेवकूफी , और ना करने पर नुकसान होगा ऐसा समझना वहम है , मुसलमानों को ऐसी हरकत से बचना चाहिये ! ( हवाला : रिसाला मुहर्रम व ताजियादारी , पेज 59 )


2. ताजिया आता देख मुहं मोड़ ले , उसकी तरफ देखना भी नहीं चाहिये ! ( हवाला : इर्फाने शरीअत , पहला भाग पेज 15 )


3. ताजिये पर चढ़ा हुआ खाना न खाये , अगर नियाज़ देकर चढ़ाये या चढ़ाकर नियाज़ दे तो भी उस खाने को ना खाए उससे परहेज करें ! ( हवाला : पत्रिका ताजियादारी , पेज 11 )

मसला : किसी ने पूछा हज़रत क्या फरमाते हैं ? इन अमल के बारे में

 : सवाल 1. कुछ लोग मुहर्रम के दिनों में न तो दिन भर रोटी पकाते है और न झाडू देते है , कहते है दफ़न के बाद रोटी पकाई जाएगी !

 सवाल 2. मुहर्रम के दस दिन तक कपड़े नहीं उतारते ! सवाल 3- माहे मुहर्रम में शादी नहीं करते ! 

अल जवाब : - तीनों बातें सोग की है और सोग हराम है ( हवाला : अहकामे शरियत , जिल्द अव्वल , पेज नंबर 171 ) 

हज़रत मौलाना मुहम्मद इरफ़ान रिज्वी साहिब बरेलवी का फ़तवा ! ताजिया बनाना और उस पर फूल हार चढ़ाना वगेरह सब नाजायज और हराम है ! ( हवाला : इरफाने हिदायत , पेज नंबर 9 ) 


हज़रत मौलाना अमजद अली रिज्वी साहिब बरेलवी का फ़तवा ! अलम और ताजिया बनाने और पीक बनने और मुहर्रम में बच्चों को फ़क़ीर बनाना बद्दी पहनाना और मर्सिये की मज्लिस करना और ताजियों पर नियाज़ दिलाने वगैरह खुराफ़ात है उसकी मन्नत सख्त जहालत है ऐसी मन्नत अगर मानी हो तो पूरी ना करें ! ( हवाला : बहारे शरियत , हिस्सा 9 , पेज 35 , मन्नत का बयान )

 ताजियादारी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी की नज़र में ! ये ममनू है , शरीअत में इसकी कुछ असल नहीं और जो कुछ बिदअत इसके साथ की जाती है सख्त नाजायज है , ताजि़यादारी में ढोल बजाना हराम है ! ( हवाला : फतावा रिजविया , पेज 189 , जिल्द 1 , बहवाला खुताबते मुहर्रम )

क्या अब भी हमारे मुसलमान भाई ताजिया के जुलूस जैसी खुराफात से बचने की कोशिस नही करेंगे ?

ताजि़यादारी  ताजि़यादारी पर कुछ उलेमाओ के फतवे । 

ताजियादारी हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के नज़र में .. " अशरा - ए - मुहर्रम में ताजियादारी ओर कब्र की सूरत वगैरह बनाना जाईज़ नहीं । ताजियादारी जैसा कि बद मज़हब करते है , ये सब बिदअत है । 

और ऐसे ही ताबूत , कब्रों , की सूरत और अलम वगैरह भी बिदअत है और जाहिर है कि बिदअते सइय्या सख्त बिदअत  है । ( फतावा अजीजिया , पेज 75 जिल्द 1 )

ताजियादारी हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी की नज़र में :::: आला हज़रत लिखते है कि ये ममनूअ है , शरियत में कुछ असल नहीं और जो कुछ बिदअते उसके साथ की जाती है सब नाजाइज है ताजिया की ताजीम बिदअत है ( फतावा रिज़विया , पेज 254 , जिल्द 2 बहवाला खुतबाते - मुहर्रम ) ताजिया बनाना नाज़ाइज है ( फतावा रिज़विया , पेज 186 , जिल्द 6 बहवाला खुतबाते - मुहर्रम )

मसलके अहले सुन्नत के उल्मा की नज़र में ताजियादारी ?

सवाल : ताजियादारी जायज है या नाजायज ? 

जवाब : ताजियादारी मुरौवजा - ए - हिंद ( जो हिन्दुस्तान में पैदाशुदा है जो आजकल हो रहा है ) नाजाइज है और बिदअते - सइय्या ( सख्त बिदअत ) और हराम है 

सवाल : अलम उया शुददे ( निशान या झंडा } निकालना , साथ ही ताजिया को आशूरा की रात को गलियों में लेकर गश्त करना , फिर उसे दसवीं मुहर्रम को बनावटी कर्बला में ले जाकर दफ़न करना , और ताजिया के आगे - आगे बाजा ( ढोल - ड्रम ) बजाते हुए मस्नुई ( बनावटी ) कर्बला तक ले जाना , इनकी शरियत में क्या असल है ? 

जवाब : ये सब नाजाइज व हराम है , कातिले - अहले - इस्लाम है , जब सब बाते नाजाइज और हराम है तो शरियत में इनकी कुछ असल नहीं ,

 बल्कि अगर सवाल ये हो कि ये नकल किसकी है तो ये सब काम यज़ीदी फ़ौज की नक़ल है क्योंकि उन्होंने कर्बला में जुल्मो - सितम के पहाड़ तोड़ने के बाद इमाम हुसैन रदिअल्लाहु अन्हु का सर मुबारक को नेज़ो पर रखकर कूफ़ा की गलियों में खुशी के इज़हार के लिए घुमाया था 

सवाल : ढोल , ताशे , शुद्दे वगैरह को मस्जिद में रखना शरियत की नज़र में कैसा है?

जवाब : ये वाहियात और खुराफ़ात चीजें सब नाजाइज है तो जहाँ भी रखे नाजाइज ही होगा , बल्कि इनको मस्जिद से बहार निकल कर फेंकने वाला सवाब पायेगा क्योंकि नाजाइज चीज से उसने मस्जिद को पाक किया हवाला : मुहम्मद जहाँगीर खां , गफरुल- मुफ्ती मरकज़े अहले सुन्नत मंज़रुल इस्लाम , 

बरेली शरीफ इनके इस फतवे पर अहले सुन्नत के 75 उलमा किराम की तसदीकात मौजूद है , जिसमें कुछ उल्मा ए किराम के नाम नीचे लिखे है । सही जवाब - मुहम्मद मुस्तफ़ा रज़ा खां , बरेली शरीफ ( मुफ्ती - ए - आज़म हिंद )

सही जवाब - मुफ्ती सैय्यद मुहम्मद अफज़ल हुसैन म बरेली शरीफ

 सही जवाब - अल सैय्यद हामिद अशरफुल - शिरानी अल - जीलानी , कछौछवी , 

मुम्बई सही जवाब – फकीर अबू - ताहिर मुहम्मद तय्यब अली कादिरी गफरुल - मुफ्ती ए - शहर- जावरा , रतलाम सही जवाब – अब्दुर्रऊफ़ गफरुल - मुदर्रिस अशरफिया , 

मुबारकपुर , आजमगढ़ सही जवाब - सैय्यद मुहम्मद मुख़्तार अशरफ़ , सज्जादानशीन कछोछवा शरीफ सही जवाब – अब्दुल अज़ीज़ अशरफी ,

 अल्ताफ़गंज , फैज़ाबाद और भी बहुत से लोग है आप इस फतवे को " खुतबाते - मुहर्रम ” लेखक जलालुद्दीन साहब , औझागंज बस्तवी की किताब में भी देख सकते है इतना वाजे मसला होने के बाद भी अगर कोई फिर भी अपने रिवाज को इस्लाम की खातिर बदलने के लिए तैयार ना हो तो उसका क्या इलाज़ , उसका मामला अल्लाह के हवाले |

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kya islaam mein taajiyaadaaree jaiz hai

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phataava razaviya ji.10 kist avval sa.36


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taajiyedaaree se mutallik taphaseelee maalamaat haasil karane ke lie kitaab muharram mein kya jaiz kya naajaiz ka mutaala karen |


galat fahamiyaan aur unakee islaah saphaha,176


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2. taajiya aata dekh muhan mod le , usakee taraph dekhana bhee nahin chaahiye ! { havaala : irphaane shareeat , pahala bhaag pej 15 }


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masala : kisee ne poochha hazarat kya pharamaate hain ? in amal ke baare mein : savaal 1- kuchh log muharram ke dinon mein na to din bhar rotee pakaate hai aur na jhaadoo dete hai , kahate hai dafan ke baad rotee pakaee jaegee ! savaal 2- muharram ke das din tak kapade nahin utaarate ! savaal 3- maahe muharram mein shaadee nahin karate ! alajavaab : - teenon baaten sog kee hai aur sog haraam hai { havaala : ahakaame shariyat , pahala bhaag , pej 171 } 

hazarat maulaana muhammad irafaan rijvee saahib barelavee ka fatava ! taajiya banaana aur us par phool haar chadhaana vagerah sab naajaayaj aur haraam hai ! { havaala : iraphaane hidaayat , pej 9 } 


hazarat maulaana amajad alee rijvee saahib barelavee ka fatava ! alam aur taajiya banaane aur peek banane aur muharram mein bachchon ko faqeer banaana baddee pahanaana aur marsiye kee majlis karana aur taajiyon par niyaaz dilaane vagairah khuraafaat hai usakee mannat sakht jahaalat hai aisee mannat agar maanee ho to pooree na karen ! { havaala : bahaare shariyat , hissa 9 , pej 35 , mannat ka bayaan }

 taajiyaadaaree aala hazarat imaam ahamad raza barelavee kee nazar mein ! ye mamanoo hai , shareeat mein isakee kuchh asal nahin aur jo kuchh bidat isake saath kee jaatee hai sakht naajaayaj hai , taajiyaadaaree mein dhol bajaana haraam hai ! { havaala : phataava rijaviya , pej 189 , jild 1 , bahavaala khutaabate muharram }


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...... taajiyaadaaree .. taajiyaadaaree par kuchh ulemao ke phatave . taajiyaadaaree hazarat shaah abdul azeez muhaddis dehalavee ra 0 ke nazar mein .. " ashara - e - muharram mein taajiyaadaaree or kabr kee soorat vagairah banaana jaeez nahin . taajiyaadaaree jaisa ki badamajahab karate hai , bidat hai | aur aise hee taaboot , kabron , kee soorat aur alam vagairah bhee bidat hai aur jaahir hai ki bidate sayya ( sakht bidat } hai . { phataava ajeejiya , pej 75 jild 1 } 

taajiyaadaaree hazarat imaam ahamad raza barelavee kee nazar mein :::: aala hazarat likhate hai ki ye mamanoo hai , shariyat mein kuchh asal nahin aur jo kuchh bidate usake saath kee jaatee hai sab naajaij hai taajiya kee taajeem bidat hai { phataava rizaviya , pej 254 , jild 2 bahavaala khutabaate - muharram } taajiya banaana naazaij hai ( phataava rizaviya , pej 186 , jild 6 bahavaala khutabaate - muharram } 

masalake ahale sunnat ke ulma kee nazar mein taajiyaadaaree 

savaal : taajiyaadaaree jaayaj hai ya naajaayaj ? 

javaab : taajiyaadaaree murauvaja - e - hind ( jo hindustaan mein paidaashuda hai jo aajakal ho raha hai } naajaij hai aur bidate - saiyya ( sakht bidat } aur haraam hai 

savaal : alam uya shudade ( nishaan ya jhanda } nikaalana , saath hee taajiya ko aashoora kee raat ko galiyon mein lekar gasht karana , phir use dasaveen muharram ko banaavatee karbala mein le jaakar dafan karana , aur taajiya ke aage - aage baaja { dhol - dram } bajaate hue masnuee ( banaavatee ) karbala tak le jaana , inakee shariyat mein kya asal hai ? 

javaab : ye sab naajaij va haraam hai , kaatile - ahale - islaam hai , jab sab baate naajaij aur haraam hai to shariyat mein inakee kuchh asal nahin , balki agar savaal ye ho ki ye nakal kisakee hai to ye sab kaam yazeedee fauj kee naqal hai kyonki unhonne karbala mein julmo - sitam ke pahaad todane ke baad imaam husain radiallaahu anhu ka sar mubaarak ko nezo par rakhakar koofa kee galiyon mein khushee ke izahaar ke lie ghumaaya tha 

savaal : dhol , taashe , shudde vagairah ko masjid mein rakhana shariyat kee nazar mein kaisa hai?

javaab : ye vaahiyaat aur khuraafaat cheejen sab naajaij hai to jahaan bhee rakhe naajaij hee hoga , balki inako masjid se bahaar nikal kar phenkane vaala savaab paayega kyonki naajaij cheej se usane masjid ko paak kiya havaala : muhammad jahaangeer khaan , gapharul- muphtee marakaze ahale sunnat manzarul islaam , barelee shareeph inake is phatave par ahale sunnat ke 75 ulama kiraam kee tasadeekaat maujood hai , jisamen kuchh ulma e kiraam ke naam neeche likhe hai . sahee javaab - muhammad mustafa raza khaan , barelee shareeph ( muphtee - e - aazam hind } sahee javaab - muphtee saiyyad muhammad aphazal husain ma barelee shareeph sahee javaab - al saiyyad haamid asharaphul - shiraanee al - jeelaanee , kachhauchhavee , mumbee sahee javaab – phakeer aboo - taahir muhammad tayyab alee kaadiree gapharul - muphtee e - shahar- jaavara , ratalaam sahee javaab – abdurroof gapharul - mudarris asharaphiya , mubaarakapur , aajamagadh sahee javaab - saiyyad muhammad mukhtaar asharaf , sajjaadaanasheen kachhochhava shareeph sahee javaab – abdul azeez asharaphee , altaafaganj , phaizaabaad aur bhee bahut se log hai aap is phatave ko " khutabaate - muharram ” lekhak jalaaluddeen saahab , aujhaaganj bastavee kee kitaab mein bhee dekh sakate hai itana vaaje masala hone ke baad bhee agar koee phir bhee apane rivaaj ko islaam kee khaatir badalane ke lie taiyaar na ho to usaka kya ilaaz , usaka maamala allaah ke havaale |

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