shahadat ke baad ka waqia
shahadat ke baad kya hua
शहादत के बाद का वाकेआ कर्बला में
हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु का वुजूदे मुबारक यज़ीद की बे काइदगियों के लिए एक ज़बरदस्त मुहतसिब था ।
वह जानता था कि आपके ज़मान - ए - मुबारक में उसको बे - मुहारी का मौका मयस्सर न आएगा ।
और उसकी कजरवी ( टेढ़ेपन ) और गुमराही पर हज़रते इमाम हुसैन सब्र न फरमायेंगे उसको नज़र आता था।
shahadat ke baad kya hua |
कि इमाम जैसे दीनदार का ताज़ियान - ए - तअज़ीर ( हन्टर ) हर वक़्त उसके सरपर घूम रहा है ।
इसी वजह से वह और भी ज्यादा हज़रत इमाम आली मकाम हुसैन ए पाक की जान का दुश्मन था।
और इसी लिए हज़रत इमाम ए हुसैन रदिअल्लाहु अन्हु की शहादत उसके लिए बाइसे मुसर्रत हुई ।
हज़रत इमाम ए हुसैन का साया उठना था यज़ीद खुल गया और तरह - तरह के मुआसी ( गुनाहों ) की गर्म बाज़ारी हो गई ।
ज़िना , लिवातत , हराम कारी , भाई बहन का ब्याह , सूद , शराब , धड़ल्ले से राइज हुए ।
नमाज़ों की पाबन्दी उठ गई । तमर्रुद व सरकशी इंतिहा को पहुंची ।
शैतानियत ने यहाँ तक ज़ोर किया कि मुस्लिम बिन उक्बा को बारह हज़ार (12000) या बाइस हज़ार (22000) का लश्करे गिरां लेकर मदीना तैय्यबा की चढ़ाई के लिए भेजा ।
यह सन् 63 हिजरी का वाक्या है ।
इस नामुराद लश्कर ने मदीना तैय्यबा में वह तूफान बरपा किया कि अल - अज़्मतु लिल्लाह , कत्ल व गारत और तरह - तरह के मज़ालिम हम्साइगान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही व सहबेही व बारिक व सल्लिम पर किए ।
वहाँ के रहने वाले के घर लूट लिए । (700) सात सौ सहाबा किराम को शहीद किया और दूसरे आम बाशिन्दे मिला कर दस हज़ार (10000) से ज़्यादा को शहीद किया ।
लड़कों का कैद कर लिया । ऐसी - ऐसी बद - तमीज़ियाँ की जिनका ज़िक्र करना नागवार है ।
मस्जिदे नबवी शरीफ़ के सुतूनों में घोड़े बांधे । तीन दिन तक लोग मस्जिद शरीफ में नमाज़ से मुशर्रफ न हो सके ।
यहां पर ठहर कर एक बात और दिलाना जरूरी है कि जब यजीद लश्कर भेज कर मदीना तैय्यबा में हमला करवाया और मस्जिद ए नबवी में कोई शख्स नहीं जा पाता था।
ऐसे आलम में लोग अपने अपने मकानों घरों पर इबादत ए इलाही करते थे।
और जब आज के वक्त में सरकार यानी गोवरमेन्ट कोरोना वायरस के चलते मस्जिदों को बन्द करने का हुक्म जारी कर दिया था तो लोग जबरदस्ती चुपके चुपके मस्जिद में इबादत ए इलाही करते थे और बहुत सारे दीनी इस्लामी भाई अपने घरों में भी इबादत ए इलाही करते थे।
आज कल खास कर के हिन्दुस्तान के मुसलमान क्या मालूम मोदी सरकार से क्यों इतना ज़्यादा चिढ़ते हैं। और वजह बताते हैं कि मोदी सरकार हिन्दू वादी सरकार है चलो हम मान लेते हैं।
कि मोदी सरकार हिन्दू वादी सरकार है।
तो क्या कोरोना वायरस बीमारी फैलने पर मोदी सरकार सिर्फ मस्जिद बन्द करने का हुक्म जारी किया था।
या तमाम मजहबी इबादत गाहों को बन्द करने का हुक्म जारी किया था।
ईमानदारी से कहूं तो मोदी सरकार सिर्फ मस्जिद ही नहीं बल्कि तमाम तर इबादत गाहें जैसे मन्दिर, चर्च , गुरूद्वारा, तमाम इबादत गाह को बन्द करने का फरमान जारी कर दिया गया था।
लेकिन एक बात कहूं दिल से मोदी सरकार ने ऐसे कोरोना वायरस के वक्त भी तमाम इबादत गाहों में (5) पांच लोगों को इजाजत थी के पांच लोग मिलकर इबादत गाहों में जाकर इबादत करें।
मेरे ख्याल से यजीद से बेहतर हमारी हिन्दुस्तान की सरकार थी जो ऐसे मुसीबतों के वक्त भी इजाजत देकर लोगों को बतला दिया के ऐ नस्ले आदम मै भी खुदा का अदना सा मख्लूक हूं।
और मुझे हया आती है यजीद से की वह मस्जिद ए नबवी में अपने घोड़ों को बांध कर इस्लाम की अजमत को मलिया मेट करने की कोशिश की गई।
सिर्फ हज़रत सईद इब्ने मुसैय्यिब रज़ि अल्लाहु अन्हु दीवाने बन कर वहाँ हाज़िर रहे ।
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने हन्ज़ला इब्ने गुसैल ने फरमाया कि यज़ीदियों के नाशाइस्ता हरकात का इस हद पर पहुंचे हैं।
कि हमें अन्देशा होने लगा कि उनकी बदकारियों की वजह से कहीं आसमान से पत्थर न बरसें ।
फिर यह लश्कर शरारते असर मक्का मुकर्रमा की तरफ रवाना हुआ ।
रास्ते में अमीरे लश्कर करबला में मर गया । और दूसरा शख्स उसका काइम मुकाम किया गया ।
मक्का मुअज्जमा पहुँच कर उन बेदीनों ने मिंजिनीक से संगबारी की ( मिन्जीनीक पत्थर फेंकने का आला होता है जिस से पत्थर फेंक कर मारा जाता है उसकी ज़द बड़ी ज़बरदस्त और दूर की मार होती है )
इस सग बारी से हरम शरीफ का सहने मुबारक पत्थरों से भर गया ।
और मस्जिदें हराम के सुतून टूट पड़े और काब - ए - मुकद्दसा के गिलाफ शरीफ और छत को उन बेदीनों ने जला दिया ।
उन छत में उस दुबे के सींग भी तबर्रुक के तौर पर महफूज़ थे । जो सैय्यदना हज़रत इस्माईल अला नबीय्येना व अलैहिस्सलातु वस्सलाम के फिदिये में कुरबानी किया गया था वह भी जल गये काबा - ए - मुकद्दसा कई रोज़ तक बेलिबास रहा और वहाँ के बाशिन्दे सख्त मुसीबत में मुबतला रहे ।
आख़िर कार यज़ीद पलीद को अल्लाह तआला ने हलाक फरमाया और वह बद - नसीब तीन (3) बरस सात (7) महीने तख्ते हुकूमत पर शैतानियत करके 15 रबीउल - अव्वल 64 हिजरी को जिस रोज़ उस पलीद के हुक्म से काब - ए - मुअज्जमा की बेहुरमती हुई थी .
शहर हम्स मुल्के शाम में (39) उन्तालीस बरस की उम्र में हलाक हुआ ।
हुनूज़ कत्ल जारी था कि यज़ीद नापाक की हलाकत की खबर पहुँची हज़रत इब्ने जुबैर ने निदा दी कि अहले शाम तुम्हारा तागूत हलाक हो गया ।
यह सुन कर वह लोग जलील व ख्वार हुए और लोग उन पर टूट पड़े और वह गिरोह नाहक पुज्दा खाइब व ख़ासिर हुआ । अहले मक्का को उनके जुल्म से नजात मिली ।
अहले हिजाज़ , यमन व इराक व खुरासान ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर के दस्ते मुबारक पर बैअत की और अहले मिस्र व शाम ने मुआविया बिन यज़ीद के हाथ पर रबीउल - अव्वल 64 हिजरी में ।
यह मुआविया अगरचे यज़ीद पलीद की औलाद से था मगर आदमी नेक और स्वालेह था । बाप के नापाक कामों को बुरा जानता था ।
इसने हुकूमत हाथ में लेते वक़्त से तादमे मौत बीमार ही रहा और किसी काम की तरफ़ नज़र न डाली और चालीस (40) या दो तीन माह की हुकूमत के बाद इक्कीस (21) साल की उम्र में मर गया ।
आखिरे वक्त में उस से कहा गया कि किसी को ख़लीफ़ा करे उसका जवाब उसने यह दिया कि मैंने ख़िलाफ़त में कोई मिठास नहीं पाई तो मैं इस तल्खी में किसी दूसरे को क्यों मुबतला करूं । मआविया बिन यजीद के इंतिकाल के बाद अहले मिस्र व शाम ने भी अब्दुल्लाह बिन जुबैर की बैअत की फिर मरवान बिन हकम ने खुरूज किया और उसको शाम व मिस्र पर कब्जा हुआ ।
सन् 65 हिजरी में उसका इंतिकाल हुआ और उसकी जगह उसका बेटा अब्दुल - मलिक उसका काइम मुकाम हुआ !
अब्दुल - मलिक के जमाने में मुख्तार बिन उबैद सक्फी ने अमर बिन सअद को बुलाया ।
इब्ने सअद का बेटा हफ्स हाजिर हुआ । मुख्तार ने दरयाफ्त किया तेरा बाप कहाँ है ?
कहने लगा कि वह खल्वत नशीन हो गया है घर से बाहर नहीं निकलता । उस पर मुख्तार ने कहा अब वह ' रय की हुकूमत कहाँ है ।
जिसकी चाहत में फरजन्दे रसूल से बेवफाई की थी अब क्यों उस से दस्त बरदार हो कर घर में बैठा है । हज़रत इमाम के शहादत के रोज क्यों खाना नशीन न हुआ ।
उसके बाद मुख्तार ने इब्ने सअद और उसके बेटे और शिम्र नापाक की गर्दन मारने का हुक्म दिया और उन सबके सर कटवा कर हज़रत मुहम्मद बिन हन्फीया बरादर हज़रत इमाम रजि अल्लाहु तआला अन्हु के पास भेज दिए।
और शिम्र की लाश को घोड़ों के सुमों से रौंदवा दिया जिस से उसके सीने और पसली की हड्डियाँ चक्ना चूर हो गई ।
शिम्र हज़रत इमाम के कातिलों में से है । और इब्ने सअद उस लश्कर का काफिला सालार व कमानदार था।
जिसने हज़रत इमाम पर मज़ालिम के तूफान तोड़े आज उन ज़ालिमाने सितम शिआर व मग़रूराने नाबकार के सर तन से जुदा करके गली कूचे में फिराए जा रहे हैं ।
और दुनिया में कोई उनकी बेकसी पर अफसोस करने वाला नहीं । हर शख्स मलामत करता है ।
और नज़रे हिकारत से देखता है और उनकी इस जिल्लत व रुसवाई की मौत पर खुश होता है । मुसलमानों ने मुख्तार के इस कारनामे पर खुशी का इज़हार किया ।
और उसको दुश्मनाने इमाम से बदला लेने पर मुबारकबाद दी ।
ऐ इब्ने सअद रय की हुकूमत तो क्या मिली
जुल्म व जफा की जल्द ही तुझको सज़ा मिली
' ऐ शिम्र नाबकार शहीदों के खून की
कैसी सज़ा तुझे अभी ऐ ना सज़ा मिली
ऐ तिशनगाने खून जवानाने अहले बैत
देखा कि तुमको जुल्म की कैसी सजा मिली
कुत्तों की तरह लाशे तुम्हारे सड़ा किए
घूरे पे भी न गोर को तुम्हारी जा मिली
रुस्वाए खल्क हो गये बरबाद हो गये
मरदूदो ! तुम को ज़िल्लते हर दोसरा मिली
तुमने उजाड़ा हज़रते जुहरा का बोस्तां
तुम खुद उजड़ गये तुम्हें यह बहुआ मिली
दुनिया परस्तो ! दीन से मुँह मोड़ कर
तुम्हें दुनिया मिली न ऐश व तरब की हवा मिली
आख़िर दिखाया रंग शहीदों के खून ने
सर कट गये अमां न तुम्हें इक ज़रा मिली
पाई है क्या नईम उन्होंने अभी सज़ा
देखेंगे वह जहीम में जिस दिन सज़ा मिली
इसके बाद मुख्तार ने एक हुक्मे आम दिया कि करबला में जो शख्स अमर बिन सअद का शरीक था वह जहाँ पाया जाए , मार डाला जाए ।
यह हुक्म सुन कर कूफा के जफ़ा शिआर सूरमा बसरा भागना शुरू हुए मुख्तार लश्कर ने उनका पीछा किया जिसको जहाँ पाया ख़त्म कर दिया ।
लाशें जला डालीं । घर लूट लिए । ख़ोली बिन यज़ीद वह ख़बीस है जिस ने हज़रत इमाम आली मकाम का सर मुबारक तने अक्दस से जुदा किया था ।
यह रूसियाह भी गिरफ्तार करके मुख़्तार के पास लाया गया । मुख़्तार ने पहले उसके चारों हाथ पैर कटवाए फिर सूली चढ़ाया ।
आख़िर आग में झोंक दिया । इस तरह लश्कर इब्ने सअद के तमाम ज़ालिमों को तरह - तरह के अज़ाबों के साथ हलाक किया ।
छः हज़ार (6000) कूफ़ी जो हज़रत इमाम के क़त्ल में शरीक थे उनको मुख़्तार ने तरह - तरह के अज़ाबों के साथ हलाक कर दिया ।
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