shab e barat ki namaz |Shab e barat 2025 ke nafil ibadaten |Shabe Qadr's Fazilat and method of prayer
shab e barat ki namaz
बाद नमाज़ ए इशा 7 मर्तबा सूरह कद्र (इन्ना अन्जलना) पढ़ें ।
फजीलत :-
हर मुसीबत से निजात मिलेगी हजार फरिश्ते उस के लिए जन्नत की दुआ करते हैं
दो (2) रकात नमाज पढे़ं
नमाज पढ़ने का तरीका :-
हर रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह कद्र (इन्ना अन्जलना) एक (1) मर्तबा सूरह अख्लास (कुल हुवल्लाह) तीन (3) मर्तबा पढ़ें।
फजीलत :-
उसको शबे कद्र का सवाब हासिल होगा हजरत इद्रीस हजरत शुऐब हजरत अय्यूब हजरत दाऊद अलैहिस सलातो वस्सलाम जैसा सवाब मिलेगा और उसको एक शहर जन्नत में दिया जाएगा जो कि मशरिक से मगरिब तक लम्बा चौडा़ होगा ।
चार (4) रकात नमाज एक सलाम से पढे़ं
नमाज पढ़ने का तरीका :-
हर रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह कद्र (इन्ना अन्जलना) तीन (3) मर्तबा सूरह अख्लास (कुल हुवल्लाह) सात (7) मर्तबा पढ़ें।
फजीलत :-
अल्लाह पाक मौत की सकरात को आसान कर देगा अजाबे कब्र को दूर कर देगा
दो (2) रकात नमाज पढे़ं
नमाज पढ़ने का तरीका :-
हर रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह कद्र (इन्ना अन्जलना) सात (7) मर्तबा सूरह अख्लास (कुल हुवल्लाह) सात (7) मर्तबा पढ़ें। बाद नमाज़ के दरूद शरीफ और इस्तगफार पढ़े
फजीलत :-
अल्लाह पाक उस नमाज़ पढ़ने वाले और उसके माँ बाप को बख्श देगा।
चार (4) रकात नमाज एक सलाम से पढे़ं
नमाज पढ़ने का तरीका :-
हर रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह तकासुर (अल हाकमुत तका सुर) एक (1) मर्तबा सूरह अख्लास (कुल हुवल्लाह) तीन (3) मर्तबा पढ़ें।
फजीलत :-
जन्नत में चार (4) सुतून मिलेगी जिनके हर सुतून पर हजार महल होंगे।
चार (4) रकात नमाज एक सलाम से पढे़ं
नमाज पढ़ने का तरीका :-
हर रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह कद्र (इन्ना अन्जलना) एक (1) मर्तबा सूरह अख्लास (कुल हुवल्लाह) सत्ताइस (27) मर्तबा पढ़ें।
फजीलत :-
तमाम गुनाह माफ हो जायेंगे जन्नतुल मुअल्ला में घर अता होगा।
चार (4) रकात नमाज एक सलाम से पढे़ं
नमाज पढ़ने का तरीका :-
हर रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह कद्र (इन्ना अन्जलना) तीन (3) मर्तबा सूरह अख्लास (कुल हुवल्लाह) पचास ( 50 ) मर्तबा पढ़ें। बाद नमाज़ सज्दे में सर रख कर ये तस्बीह पढ़ें सुब्हानल लाही वलहम्दु लिल्लाही वा ला इलाहा इल लल लाहु वल्लाहु अकबर ।
फजीलत :-
जो दुआ मागोगे कुबूल होगी कुल गुनाह बख्श दिये जायेंगे इन्तहा नेअमत अता होगी।
दो (2) रकात नमाज पढे़ं
नमाज पढ़ने का तरीका :-
हर रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह कद्र (इन्ना अन्जलना) एक (1) मर्तबा सूरह अख्लास (कुल हुवल्लाह) सौ (100) मर्तबा पढ़ें। बाद सलाम के ग्यारह (11) मर्तबा दरूद शरीफ पढ़ें।
फजीलत :-
बहुत सवाब होगा।
चार (4) रकात नमाज एक सलाम से पढे़ं
नमाज पढ़ने का तरीका :-
हर रकात में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह कद्र (इन्ना अन्जलना) एक (1) मर्तबा सूरह अख्लास (कुल हुवल्लाह) पाँच ( 5 ) मर्तबा पढ़ें। बाद नमाज़ सज्दे में सर रख कर इकतालिस (41) मर्तबा पढ़ें (सुब्हानल्लाह 41बार) ।
फजीलत :-
जो दुआ माँगोगे कुबूल होगी।
शबे कद्र में ये दुआ कसरत से पढ़ें।
(1) अल्लाहुम्मा इन्नका अफुअन तुहिब्बुल अफ्वा फ अफु अन्नी ।
(2) अल्लाहुम्मा इन्नि अस अलुकल अफ्वा वल आफियता वल म अ फाती फिद्दीनी वद दुनिया वल आखिरति।
(3) अशहदु अल्ला इलाहा इल लल लाहु अस्तगफिरुल लाहा अस अलुकल जन्नता वा अउजु बिका मिनन नार।
(4) अल्लाहुम्मा अजिरना मिनन नार या मुजीरू या मुजीरू या मुजीरु ।
shab e barat ki namaz
शबे क़द्र की फजीलत व नमाज़ का तरीका
रमजान मुबारक की रातों में से एक रात शबे कदर कहलाती है जो बहुत ही कदर व मनाजिलात और खैरो बरकत की हामिल रात है । इसी रात को अल्लाह ताला ने हजार महीनों से अफज़ल क़रार दिया है । हजार महीने के 83 साल 4 महीने बनते हैं। यानी जिस शख्स की यह एक रात इबादत में गुजरी उसने 83 साल 4 महीने का जमाना इबादत में गुज़ार दिया और 83 साल का जमाना कम से कम है। क्योंकि "खैरुम मिन अलफि शहर " कहकर इस अमर् की तरफ इशारा फरमाया गया है कि अल्लाह करीम जितना ज्यादा अजर् अता फरमाना चाहेगा अता फरमा देगा, इस अजर् का अंदाजा इंसान के बस से बाहर है।
शबे कद्र का मफहूम
इमाम ज़हरी रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते हैं कि " कद्र "का मायनी मर्तबा से है क्योंकि ये रात बाकी रातों के मुकाबले में शर्फ व मर्तबा के लिहाज से बुलंद है इसलिए इसे लैलतुल कद्र कहा जाता है ।
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से मर्वी है जो कि इस रात में अल्लाह ताला की तरफ से 1 साल की तकदीर व फैसले का कलमदान फरिश्तों को सौंपा जाता है इस वजह से यह लैलतुल कद्र कहलाती है।
इस रात को कद्र के नाम से ताबीर करने की वजह यह भी बयान की जाती है :- इस रात में अल्लाह ताला ने अपनी का़बिले कदर किताब का़बिले कदर उम्मत के लिए साहिबे कद्र रसूल की मार्फत नाजिल फरमाई, यही वजह है कि इस सूरह में लफ्ज़े कद्र तीन दफा आया है। (तफसीरे कबीर-28:32)
लफ्ज़े कद्र के मानी में इस्तेमाल होता है इस लिहाज से इस रात को कदर् वाली कहने की वजह यह है कि इस रात आसमान से फर्से जमीन पर इतनी कसरत के साथ फरिश्तों का नुजूल होता है कि जमीन तंग हो जाती है। (तफसीरे खाजिन 04:395)
इमाम अबू बकर अल वराक़ " कद्र "की वजह बयान करते हुए कहते हैं कि यह रात इबादत करने वाले को साहिबे कद्र बना देती है अगरचे वह पहले इस लायक़ नहीं था । (कुरतुबी)
फजीलते शबे कद्र
हजरत बू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से मर्वी है कि जनाब ए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- जिस शख्स ने शबे कादर में अजरो सवाब की उम्मीद से इबादत की उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं । (सही बुखारी -1/ 270)
हजरत अनस रजियल्लाहु अन्हु से मर्वी है कि रमजान उल मुबारक की आमद पर एक मर्तबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया:- यह जो माह तुम पर आ रहा है इसमें एक ऐसी रात है जो हजार माह से अफजल है जो शख्स इस रात से महरूम रह गया गोया वह सारे खैर से महरूम रहा और इस रात की भलाई से वही शख्स महरुम रह सकता है जो वक़ातन महरुम हो। (सुनन इब्ने माजा-20)
ऐसे शख्स की महरूमी मे वक़ातन क्या शक हो सकता है जो इतनी बड़ी नियामत को गफलत की वजह से गवा दे ,जब इंसान मामूली मामूली बातों के लिए कितनी राते जाग कर गुजार देता है तो 80 साल की इबादतों से अफज़ल इबादत के लिए चंद राते क्यों ना जागे जिस रात में जिबरीले अमीन फरिश्तों के साथ उतरते हों और इबादत करने वालों के लिए दुआएं मगफिरत करते हों ।
यह रात बड़ी फजीलत वाली रात है। रमजान शरीफ के आखिरी दिनों में 21, 23, 25, 27 व 29 वीं रातों में से वह एक रात होती है।
इस रात (शबे क़द्र) के बारे में जितनी भी हदीस की रिवायतें आइ हैं। सब सही बुखारी, सही मुस्लिम और सही सनद से वर्णन हैं। इस लिए हदीस के विद्ववानों ने कहा है कि सब हदीसों को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि शबे क़द्र हर वर्ष विभिन्न रातों में आती हैं। कभी 21 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 23 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 25 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 27 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 29 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती और यही बात सही मालूम होता है। इस लिए हम इन पाँच बेजोड़ वाली रातों में शबे क़द्र को तलाशें और बेशुमार अज्रो सवाब के ह़क़्दार बन जाए।
हुजूर नबी-ए-करीम ने फरमाया है कि शब-ए-कद्र को रमजान के आखिरी दिनों की ताक रातों में तलाश करो। उलमा का इस पर इत्तेफाक है कि शब-ए-कद्र रमजान की 27वीं रात है। इस रात में इबादत का सवाब हजार महीनों की इबादत से ज्यादा है।
शबे क़द्र की निशानी
रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस रात की कुछ निशानी बयान फरमाया है। जिस के माध्यम से इस महत्वपूर्ण रात को पहचाना जा सकता है।
(1) यह रात बहुत रोशनी वाली होगी, आकाश प्रकाशित होगा, इस रात में न तो बहुत गरमी होगी और न ही सर्दी होगी बल्कि वातावरण अच्छा होगा, उचित होगा। जैसा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने निशानी बतायी है, जिसे सहाबी वासिला बिन अस्क़अ वर्णन करते है कि……..
अल्लाह के रसूल स्वलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “शबे क़द्र रोशनी वाली रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और वातावरण संतुलित होता है और सितारे को शैतान के पीछे नही भेजा जाता।” ( (तबरानी)
(2) यह रात बहुत संतुलित वाली रात होगी। वातावरण बहुत अच्छा होगा, न ही गर्मी और न ही ठंडी होगी। हदीस रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इसी बात को स्पष्ट करती है…..
“शबे क़द्र वातावरण संतुलित रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है तो लालपन धिमा होता है।” (सहीह इब्ने खुजेमा तथा मुस्नद तयालसी)
(3) शबे क़द्र के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी धिमी होती है, सुर्य के रोशनी में किरण न होता है । जैसा कि उबइ बिन कअब वर्णन करते हैं कि ……
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने फरमायाः “उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी में किरण नही होता है।” (सहीह मुस्लिम)
हक़ीक़त तो यह है कि इन्सान इन रातों की निशानियों का परिचय कर पाए या न कर पाए बस वह अल्लाह की इबादतों, ज़िक्रो-अज़्कार, दुआ और क़ुरआन की तिलावत, क़ुरआन पर गम्भीरता से विचार किरे । इख्लास के साथ, केवल अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए अच्छे तरीक़े से अल्लाह की इबादत करे।
शबे कद्र को मखफी क्यों रखा गया ???
इतनी अहम और बा बरकत रात के मख्फी होने की बहुत सी हिकमते बयान की गई है इनमें से चंद यह है :
१.दिगर अहम मक्खी उमूर मसलन इस्मे -आजम, जुमे के रोज़ कुबूलियते दुआ की घड़ी की तरह इस रात को भी मख्फी रखा गया।
२.अगर इसे मख्फी ना रखा जाता तो सिर्फ इसी रात के अमल पर इक्तफा कर लिया जाता जौके़ इबादत की खातिर इसको जाहिर नहीं किया गया ।
३.अगर किसी मजबूरी की वजह से किसी शख्स की वो रात रह जाती तो शायद इस सदमे का इजाला मुमकिन ना होता ।
४.अल्लाह ताला को चूंकी बंदों का रात के औकात में जागना और बेदार रहना महबूब है इसलिए रात की ताइन ना फरमाई ताकि इसकी तलाश में मुताद्दिद रातें इबादत में गुजारे ।
५.इस रात के मख्फी रखने की एक वजह गुनहगारों पर शफक़त है क्योंकि अगर इल्म के बावजूद इस रात में गुनाह सरजद होते तो इससे लैलतुल कद्र की अजमत मजरूह करने का जुर्म भी लिखा जाता ।
शबे क़द्र की नवाफ़िल
इस रात में इबादत के मुख्तलिफ (अनेक) तरीकें हैं। बडे खुश नसीब हैं वह मुसलमान जो शबे क़द्र जैसी फ़जीलत व अज़मत वाली रात पाएं । और उसकी क़द्र जान कर नमाज़ो तिलावत ज़िक्रो नवाफ़िल, और दुरूदो सलाम में मसरूफ़ रहें । और शबे बेदारी (शबे बेदारी मतलब रात भर जागना ) करें । इसलिये खुदा तौफीक़ दे तो शबे क़द्र की नमाज़ जरूर पढ़नी चाहिए ।
शबे क़द्र की नमाज़ की नियत
नियत की मैंने दो रकअत / चार रकअत नमाज़ शबे क़द्र की नफ़्ल की, वास्ते अल्लाह तआला के, वक्त मौजूदा , मुँह मेरा काबे शरीफ़ की तरफ़, अल्लाहु-अकबर ।
(1) शबे क़द्र में चार रकअत नफ़्ल एक सलाम से पढे हर रकअत में सूरए फातिहा क्रे बाद सूरए क़द्र (इन्ना अन्जलना) तीन मरतबा और सूरए इखलास (कुल हुवल्लाह शरीफ़) पचास बार पढे ।
नमाज़ से फारिग होने के बाद एक बार ये तस्बीह पढे फिर दुआ मांगे सुब्हानल्लाहि वल हम्दु लिल्लाहि वला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर
(2) दो रकअत नफ़्ल अदा करें, दोनों रकअत में सूरए फातिहा के बाद सूरए क़द्र एक बार और कुल हुवल्लाहु बीस बार पढ़ें ।
नमाज़ के बाद फिर कुल हुवल्लाह पाँच सौ (500)मर्तबा और अस्तग़फिरुल्लाहा रब्बी मिन कुल्लि ज़मबिंव व अतु बु इलैहि 0 सौ(100) मरतबा और दुरूद शरीफ़ सौ(100) मरतबा पढ कर दुआ मांगे
(3) दो-दो रकअत की नियत से सौ रक्अत नफ़्ल अदा करे। हर रकअत में सूरए फातिहा के बाद एक बार सूरए क़द्र और तीन बार कुल हुवल्लाह शरीफ पढे ।
और हर दो रकअत पर सलाम के बाद दुरूद शरीफ़ दस बार पढे ।
(4) वह दुआ जिसको सरवरे आलम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उम्मुल मोमिनीन हज़रत आएशा सिद्दीका रजियल्लाहो तआला अन्हा को शबे क़द्र में विर्द करने के लिये तालीम फरमाई । इसे खूब पढे ।
दुआ यह है: अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ़वा फ़अफु अन्नी या ग़फूर 0
आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) रिवायत करती हैं कि, मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से सवाल किया कि यदि मैं क़द्र की रात को पा लूँ तो क्या दुआ करू,
तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “अल्लाहुम्मा इन्नक अफुव्वुन करीमुन, तू हिब्बुल-अफ्व, फअफु अन्नी।”
अर्थः ‘ऐ अल्लाह। निःसन्देह तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसन्द फरमाता, तू मेरे गुनाहों को माफ कर दे।” (सुन्न इब्ने माजह ७३१)
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