आखिर इमामों पर इतना ज़ुल्म क्यूँ
एक पोस्ट बडी तेजी से इन्टरनेट पर वायरल हो रही है
जिसका जवाब इसी पोस्ट मे दिया गया है
आखिर इमामों पर इतना ज़ुल्म क्यूँ )
पोस्ट बड़ी है बराए करम मुकम्मल पढें)
ज़रा दिल की गहराइयो से बताओ ऐसा क्यों)
आज एक इंजीनियर नक़्शा बनाने की फ़ीस पहले ही तैय करलेता है)
आज एक डॉक्टर अपनी फ़ीस पहले ही तैय करलेता है)
आज एक ऑपरेटर अपनी फ़ीस पहले ही तैय कर लेता है)
आज एक टेक्सी वाला अपना किराया पहले ही तैय कर लेता है)
आज एक किराने वाला अपना सामान का रेट पहले ही फ़िक्स करलेता है)
आज एक सब्ज़ी वाला अपनी सब्ज़ी का अपने मन का भाव फ़िक्स कर लेता है)
नोट :- माना की इन्होने अपने हुनर के दम पर काम के हिसाब से जिसने जितना माँगा उसे दे दिया गया)
एक इमाम साहब ही है जिनको कभी हमने उतना नहीं दिया जितना उन्हें चाहिए था)
अगर हमारे इमाम साहब हर काम का रेट फ़िक्स करदे तो)
मस्लन )
नमाज़े जनाज़ा पढ़ाना (500)रूपये
तीजा की फ़ातिहा (800)रूपये
दसवां की फ़ातिहा (1000)रूपये
बीसवे की फ़ातिहा (1100)रूपये
चहल्लुम की फ़ातिहा और मिलादे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्लम (1500)रूपये
छटी शरीफ=ग्यारवीं शरीफ=12वी शरीफ़=और दीगर फ़ातिहा ए =(200)रूपये
आप कहोगे साहब किया शरीअत में इसकी इजाज़त है ...तो हा इजाज़त है ...शरीअत में तो यहां तक हुक्म है की मज़दूर की मज़दूरी उसके पसीने सूखने से पेहले पहले अदा करदेना चाहिए)
आप कहोगे साहब ये हमारे इमाम साहब तो हमारे सरदार है मज़दूर थोड़ी)
तो फिर आप चौराहे पर जा जा कर क्यों कहते हों आज इमाम साहब ने मस्जिद में झाडू नहीं लगाई पानी की टंकी नहीं भरी टोपी उठा कर नहीं रखी वगैरह वगैरह )
आप अपने दिल पर हाथ रख कर बताओं ये सब काम एक मज़दूर से कराया जाता है
या फ़िर सरदार से)
खुदारा इमाम साहब को अगर सरदार बनाया है तो सरदार का ही मक़ाम दीजिए एक नौकर का नहीं)
क्यों उन्हें सता कर रुला कर अपनी दुन्या और आख़िरत बर्बाद कर रहे हों)
लेकिन आप बताए किया आपने शरीअत की कोई बात भी मानी है .....
फ़िर आप कहोगे साहब)
डॉक्टर ने)
इंजीनियर ने)
ऑपरेटर ने)
बड़ी मेहनत से ये मुक़ाम हासिल किया है)
तो साहब आपको पता है एक मौलवी साहब को मुसल्ले तक पहुँचने के लिए आठ आठ .नौ नौ साल लग जाते है लोहे के चने चबा ने के बरा बर मेहनत करना पढ़ती है तब जाकर ये मुक़ाम मिलता है साहब ऐसे ही इल्म हासिल नहीं होजाता है)
फ़िर इमामों पर इतना ज़ुल्म क्यूँ क्यूँ)
लिहाज़ा उन्हें भी उतना ही मिलना चाहिए जितना वो चाहते है )
आइम्मा हज़रातो से गुज़ारिश है कोई भी काम हो आप साहिब ए खाना से खुल कर बोले शर्मा शुर्मी में अपना नुक़सान ना करें आपके साथ भी एक परिवार के देख भाल की ज़िम्मेदारी होती है ये अवाम इतनी समझदार नहीं है की एक इमाम साहब के दिल का दर्द समझ करें)
खुदा ना ख़्वास्ता कल को अगर आपको कुछ होता है तो यही अवाम कहेगी इमाम साहब की छुट्टी करदो इनसे कुछ नहीं बनता है ये तो हमेशा बीमार ही रहते है )
और बहुत से कम अक़्ल तो यहां तक केह गुज़रते है की कहीं इमाम साहब की बीमारी हमें ना लग़ जाए)
अगर आइम्मा हज़रात मेरी इस पोस्ट से मुत्तफ़िक़ है तो मेरा सपोर्ट करे और अपना रवैय्ये में तब्दीली करें और इस पोस्ट को सभी ग्रुप में सेंड करें)
अबु हम्ज़ा सईद आलम रज़वी
मदरसा जामिआ गुलशने ज़हरा लिलबनात छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश
एक पोस्ट बडी तेजी से इन्टरनेट पर वायरल हो रही है
जिसका जवाब इसी पोस्ट मे दिया गया है
आखिर इमामों पर इतना ज़ुल्म क्यूँ )
पोस्ट बड़ी है बराए करम मुकम्मल पढें)
ज़रा दिल की गहराइयो से बताओ ऐसा क्यों)
आज एक इंजीनियर नक़्शा बनाने की फ़ीस पहले ही तैय करलेता है)
आज एक डॉक्टर अपनी फ़ीस पहले ही तैय करलेता है)
आज एक ऑपरेटर अपनी फ़ीस पहले ही तैय कर लेता है)
आज एक टेक्सी वाला अपना किराया पहले ही तैय कर लेता है)
आज एक किराने वाला अपना सामान का रेट पहले ही फ़िक्स करलेता है)
आज एक सब्ज़ी वाला अपनी सब्ज़ी का अपने मन का भाव फ़िक्स कर लेता है)
नोट :- माना की इन्होने अपने हुनर के दम पर काम के हिसाब से जिसने जितना माँगा उसे दे दिया गया)
एक इमाम साहब ही है जिनको कभी हमने उतना नहीं दिया जितना उन्हें चाहिए था)
अगर हमारे इमाम साहब हर काम का रेट फ़िक्स करदे तो)
मस्लन )
नमाज़े जनाज़ा पढ़ाना (500)रूपये
तीजा की फ़ातिहा (800)रूपये
दसवां की फ़ातिहा (1000)रूपये
बीसवे की फ़ातिहा (1100)रूपये
चहल्लुम की फ़ातिहा और मिलादे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्लम (1500)रूपये
छटी शरीफ=ग्यारवीं शरीफ=12वी शरीफ़=और दीगर फ़ातिहा ए =(200)रूपये
आप कहोगे साहब किया शरीअत में इसकी इजाज़त है ...तो हा इजाज़त है ...शरीअत में तो यहां तक हुक्म है की मज़दूर की मज़दूरी उसके पसीने सूखने से पेहले पहले अदा करदेना चाहिए)
आप कहोगे साहब ये हमारे इमाम साहब तो हमारे सरदार है मज़दूर थोड़ी)
तो फिर आप चौराहे पर जा जा कर क्यों कहते हों आज इमाम साहब ने मस्जिद में झाडू नहीं लगाई पानी की टंकी नहीं भरी टोपी उठा कर नहीं रखी वगैरह वगैरह )
आप अपने दिल पर हाथ रख कर बताओं ये सब काम एक मज़दूर से कराया जाता है
या फ़िर सरदार से)
खुदारा इमाम साहब को अगर सरदार बनाया है तो सरदार का ही मक़ाम दीजिए एक नौकर का नहीं)
क्यों उन्हें सता कर रुला कर अपनी दुन्या और आख़िरत बर्बाद कर रहे हों)
लेकिन आप बताए किया आपने शरीअत की कोई बात भी मानी है .....
फ़िर आप कहोगे साहब)
डॉक्टर ने)
इंजीनियर ने)
ऑपरेटर ने)
बड़ी मेहनत से ये मुक़ाम हासिल किया है)
तो साहब आपको पता है एक मौलवी साहब को मुसल्ले तक पहुँचने के लिए आठ आठ .नौ नौ साल लग जाते है लोहे के चने चबा ने के बरा बर मेहनत करना पढ़ती है तब जाकर ये मुक़ाम मिलता है साहब ऐसे ही इल्म हासिल नहीं होजाता है)
फ़िर इमामों पर इतना ज़ुल्म क्यूँ क्यूँ)
लिहाज़ा उन्हें भी उतना ही मिलना चाहिए जितना वो चाहते है )
आइम्मा हज़रातो से गुज़ारिश है कोई भी काम हो आप साहिब ए खाना से खुल कर बोले शर्मा शुर्मी में अपना नुक़सान ना करें आपके साथ भी एक परिवार के देख भाल की ज़िम्मेदारी होती है ये अवाम इतनी समझदार नहीं है की एक इमाम साहब के दिल का दर्द समझ करें)
खुदा ना ख़्वास्ता कल को अगर आपको कुछ होता है तो यही अवाम कहेगी इमाम साहब की छुट्टी करदो इनसे कुछ नहीं बनता है ये तो हमेशा बीमार ही रहते है )
और बहुत से कम अक़्ल तो यहां तक केह गुज़रते है की कहीं इमाम साहब की बीमारी हमें ना लग़ जाए)
अगर आइम्मा हज़रात मेरी इस पोस्ट से मुत्तफ़िक़ है तो मेरा सपोर्ट करे और अपना रवैय्ये में तब्दीली करें और इस पोस्ट को सभी ग्रुप में सेंड करें)
अबु हम्ज़ा सईद आलम रज़वी
मदरसा जामिआ गुलशने ज़हरा लिलबनात छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश
आखिर इमामों पर इतना ज़ुल्म क्यूँ
एक पोस्ट बडी तेजी से इन्टरनेट पर वायरल हो रही है
जिसका जवाब इसी पोस्ट मे दिया गया है
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Reply Maoulana Gulam Mustafa jilani razvi
ये सब बकवास की बातें हैं इमाम बनना ही सबसे बड़ी दौलत है क्योंकि वो लोग दुनिया में इमाम हैं और आखिरत में भी इमाम ही रहेंगें
पूरी पोस्ट है मेरे पास ये सरासर गलत है
ऐसे लोगों को ही उल्मा ए शू कहा गया है
ये सिर्फ और सिर्फ एक प्रोपगेन्डा फैलाया जा रहा है और इसमे इमाम लोग बढ चढ कर हिस्सा ले रहें हैं
और उनकी मजबूरी भी है की उनके पास कोई आमदनी नहीं होती
लेकिन अगर वो अपने आप को पढा लिखा कहतें हैं तो मै ऐसे लोगों को जाहिल कहूँगा
उन्हें सरकार हजरते अली के उन रिवायत को याद करने की ज़रुरत है कि
हजरत अली फरमातें हैं
एक जमाना ऐसा आयेगा की लोगो को अच्छी तरगीब देने वाले दिखेंगें उनकी बातें बडी अच्छी होगी
लेकिन तुम्हें ऐसे लोग दिखें तो कत्ल कर देना
लोगों ने पूछा ऐसी क्या बात होगी उनमे हजरत अली फरमाते हैं की वो खुद अमल नहीं करेगें और दूसरों को अमल करने को कहेगे
वो लोग दुनियादार होगें
और उल्मा अइम्मा के हवाले से हमारे नबी फरमाते है
العلماء ورسة الانبيا उल्मा मेरे वारिस है अब गौर करो हमारे नबी ए रहमत ने कभी भी दौलत की ख़्वाहिश की है हरगिज नहीं
यहाँ तक की एक पहाड से हमारे नबी का गुजर हुवा तो फरिश्ता नुमूदार होकर बारगाहे रिसालत मे अर्ज करता है हुजूर का हुक्म हो तो इस जमीन इस पहाड से दौलत हाजिर कर दूँ
सरकार ने मना फरमा दिया
और अगर सच मे वो नबी के गुलाम है तो उन्हें भी गुरबत अख्तियार करना चाहिए
सरकार आलाहजरत इमामे इश्के मुहब्बत फरमाते है कि अगर तुम किसी को तावीज भी दो तो उससे रकम ना मागो हाँ वो अपनी खुशी से दे तो लेने मे कोई हरज नहीं
अलबत्ता पैसे की बनिस्बत तावीज नहीं बनानी है मकसद ये हो की
हमसे रब खिदमते खल्क करवा रहा है
इमामे आजम अबू हनीफा को वजीर बनाया जा रहा था लेकिन उन्हों ने साफ इन्कार फरमा दिया
ऐसे ना जाने कितने रवायतें हैं
जिन लोगों को दौलत कमानी है वो डाक्टर इन्जीनियर बने और ना जाने कितने तरीके के कार्य है उस पेशे में जायें वहाँ दौलते दुनिया बहुत है
मै उल्मा ए अहले सुन्नत से अपील करता हूँ की वो ऐसे किसी के बहकावे मे ना आये अपने ईमान की हिफाजत करें और दूसरों की रहनुमाई करें हमेशा दौलत के सामने ना जाने कितने लोग अपने ईमान का सौदा करतें हैं इमामत के साथ आपको तिजारत करनी चाहिए और ना जाने कितने मआश के जरीया है
इमामे आजम अबू हनीफा रहमतुलल्ला दीन की ख़िदमत के साथ तिजारत करते रहे
आखिर इमामों पर इतना ज़ुल्म क्यूँ एक पोस्ट बडी तेजी से इन्टरनेट पर वायरल हो रही है जिसका जवाब इसी पोस्ट मे दिया गया है
मौलाना गुलाम जीलानी रज्वी इमाम मस्जिद ए आलाहजरत जिला अनुपपुर मध्य प्रदेश
पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और दूसरों की रहनुमाई करें
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